अनंत कालसर्प योग । ananat kalsarp yog
प्रीय पाठकों मै उदय प्रकाश शर्मा एक बार फिर आप सभी का स्वागत करता हूँ, कालसर्प योग को लेकर
कुंडली में अनंत कालसर्प योग के फल स्वरूप जातक को व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसे विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं, किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डांवाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चीज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं।
अनंत कलसर्प योग का उपाय । ananat kalsarp yog ke upay
* जातक 'ॐ नमः शिवाय मन्त्र' मन्त्र का अधिकाधिक मात्रा में जप करता रहे।* विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
* देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
* शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
* हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
* महामृत्युन्जय मन्त्र का जाप नित्य 108 बार करने से भी अनंत काल सर्प दोष की शान्ति होती है।
* घर में मयूर (मोर) पंख रखना शुभ होता है।
कालसर्प को लेकर अपनी बात
मुझे कुछ पाठकों ने मैसेज में लिखा की गुरु जी यह कालसर्प योग तो होता ही नहीं, इसका किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता तो उन्हें मै इतना ही कहना चाहूँगा कि काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है. कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी खोज बाद में हुई, अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता, अब जैसे ब्लॉग पहले नहीं होता था, ईमेल पहले नहीं होती थी, लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता, मगर आज यह मौजूद हैं उसी तरह युग युगांतर से हर विषय में शोध कार्य होता रहता है और जीवन में जो अनुभव में आता है, वह प्रतिपादित भी होता है तो उसे अपने अनुभव की कसौटी पर परखने के बाद हमें स्वीकार्य करना ही पड़ता है।
कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता ही कही जाएगी। कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है. कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है, कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं । इसे एकदम से नकार देना भी उचित न होगा।
एक छोटे से उदाहरण से समझें तो जब किसी छात्र की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर हो रहे हों व राहू केतु पंचम भाव को प्रभावित कर रहे हों तो अपनी 15-16 वर्ष की आयु के दौरान उस छात्र का ध्यान शिक्षा की और से डगमगाने लगता है, जबकि इस से पहले वह एक बेहतरीन छात्र के रूप में जाना जाता है। यह सत्य है की कालसर्प का योग का प्रभाव जीवन पर कहीं न कहीं पड़ता ही है। आप कालसर्प योग के ऊपर अपने अनुभव को मुझसे साझा भी कर सकते हैं।
।। इति शुभम ।।
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