Mangal Dosh मंगल दोष प्रभाव व परिहार
Rectification
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mangal dosh |
हमारे समाज में लड़के और लड़कियों की कुण्डली मिलाते समय मंगल दोष पर अधिक जोर दिया जाता है। वैसे तो लड़के के पिता इस बात से ज्यादा परेसान नहीं होते।परंतु लड़की के माता-पिता केवल यह सुनकर ही चिंता में पड़ जाते हैं कि उनकी कन्या मंगली है। इस मंगली दोष का हौआ इतना भयानक होता है कि कुछ लोग यह पता लगने पर कि उनकी लड़की मंगली है, उसकी नकली जन्मपत्री बनवा लेते हैं। अगर लड़की के मांगलिक होने की बात अपने लोगों में पता हो गई है, तो लड़की के पिता के लिए यह बहोत कष्टदायी हो जाता है। क्यों की तब बड़ी ही मुश्किल से वह किसी लड़के वालों को संतुष्ट कर पाते हैं। अगर लड़के के पिता मंगली लड़की से अपने पुत्र का विवाह करने के लिए तैयार हो गया तो विवाह हो जाता है।अन्यथा पुनः नये लड़के की तलास और उसके परिवार की सन्तुष्टि और इस स्थिति में पुनः प्रतीक्षा। इस प्रकार असंख्य सुन्दर सुशिक्षित एवं स्वस्थ कन्याओं के विवाह में मंगली दोष के कारण मुश्किल व विलम्ब होता है।
पर वास्तविकता यह है कि दाम्पत्य जीवन एवं दाम्पत्य-सुख का निर्णय करने वाले जन्मकुण्डली में से अनेक महत्वपूर्ण योगों में से मंगली दोष एक है। यह अकेला न तो दाम्पत्य जीवन को सुखमय बना सकता है, और नहीं दुःखमय। अतः लोगों को चाहिए कि वे मंगली दोष के नाम से न घबराएं। आइये जानते हैं कि मंगली दोष सचमुच में है क्या ? और इसका दाम्पत्य जीवन पे कैसा और क्या प्रभाव होता है?
कुंडली में संतान का योग
मंगली दोष तब माना जाता है, जब कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश स्थान में मंगल बैठा हो तब मंगल दोष कहा गया है। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों ?
कुंडली के प्रथम भाव में मंगल हो तो
स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति स्वभाव से उग्र एवं जिद्दी होता है।
कुंडली के चौथे स्थान में मंगल होने पर
जीवन में भोगात्मक वस्तुओं की कमी रहती है। यहाँ स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि सप्तमभाव पर पड़ती है, जो दाम्पत्य-सुख पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
कुंडली के सातवें स्थान में स्थित मंगल
दाम्पत्य-सुख ( सेक्स सुख ) की हानि तथा पत्नी के स्वास्थ्य को हानि पहुंचता है। इस स्थान में स्थित मंगल की दशम एवं द्वितीय भाव पर दृष्टि पड़ती है। दशम स्थान आजीविका का तथा द्वितीय स्थान कुटुम्ब का होता है। अतः इस स्थान में स्थित मंगल आजीविका एवं कुटुम्ब पर भी अपना प्रभाव डालता है।
कुंडली के आठवें स्थान में स्थित मंगल
जीवन में विघ्न, बाधा एवं दम्पत्ति में से किसी एक की मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
कुंडली के बारहवें स्थान में स्थित मंगल
व्यक्ति की क्रयशक्ति (किसी भी चीज को खरीदने की हैसियत) को प्रभावित करने के साथ सप्तम स्थान पर अपनी दृष्टि के द्वारा साक्षात् दाम्पत्य-सुख को भी प्रभावित करता है।
इस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल के स्थित होने पर मंगल के पड़ने वाले इन दुष्प्रभाव को ही मंगल दोष कहा गया है। ठीक इसी प्रकार चन्द्र लग्न एवं शुक्र लग्न से भी इन पांच स्थानों में मंगल होने पर भी मंगली दोष होता है। कारण यह है कि चन्द्रलग्न का भी लग्न के समान ही महत्त्व माना गया है, तथा शुक्र विवाह एवं दाम्पत्य-सुख का प्रतिनिधि तथा कारक ग्रह होता है।
दक्षिण भारत के ज्योतिष ग्रन्थों में लग्न के स्थान पर द्वितीय भाव का ग्रहण किया गया है। अतः वहां जन्मकुण्डली में द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में मंगल होने पर कुज दोष ( मंगल दोष ) माना जाता है।
जिस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल दोष होने पर दांपत्य-सुख में हानि पहुँचने की सम्भावना बनती है, ठीक उसी प्रकार इन पांच स्थानों में शनि, सूर्य, राहु या केतु होने पर भी दाम्पत्य-सुख को हानि पहुँच सकती है।
मंगली दोष लग्न, चंद्रमा या शुक्र से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में पाप ग्रह होने पर होता है किन्तु इस योग का प्रभाव सदैव एक सा नहीं रहता बल्कि इस में घट-बढ़ होती रहती है। हमारी राय में जब यह योग लग्न में बनता है तो इसका दुष्प्रभाव अपेक्षाकृत कम या कमजोर होता है । इसकी तुलना में चंद्रमा से मंगली योग होने पर इस का दुष्प्रभाव सर्वाधिक होता है। कारण यह है कि लग्न ‘शरीर’ का, चंद्रमा ‘मन’ का तथा शुक्र राति (सेक्स) का प्रितिनिधित्व करता है। तथा इन दोनों की तुलना में राति-सुख सर्वाधिक महत्त्व रखता है।
क्यों की यह योग मंगल, शनि, सूर्य, राहु एवं केतु इन पांच ग्रहों से बनता है। पर मंगल से बनने वाला यह योग सर्वाधिक दुष्प्रभावी होता है।
सप्तम स्थान साक्षात् दाम्पत्य-सुख का प्रतिनिधित्व करता है। अतः सप्तम से बनाने वाला मंगलदोष अधिकतम हानिकारक होता है। लग्न में दुष्प्रभाव कुछ कम होता है। इससे कम दुष्प्रभाव चतुर्थ में उससे भी कम अष्टम में, सबसे कम दुष्प्रभाव द्वादश स्थान से बनने वाला मंगलदोष होता है। ज्योतिष शास्त्र का एक सर्वमान्य नियम यह है कि स्वराशि, मूल-त्रिकोण राशि, उच्च राशि तथा मित्र राशि में स्थित ग्रह भाव का नाश नहीं करता, बल्कि वह भाव के लिए फल की वृद्धि करता है। किन्तु नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित ग्रह भाव के लिए अनिष्ट होता है।अतः मंगली योग का ग्रह स्वराशि मूल त्रिकोण राशि या उच्च राशि में होने पर दोषदयक नहीं होता।
इस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल के स्थित होने पर मंगल के पड़ने वाले इन दुष्प्रभाव को ही मंगल दोष कहा गया है। ठीक इसी प्रकार चन्द्र लग्न एवं शुक्र लग्न से भी इन पांच स्थानों में मंगल होने पर भी मंगली दोष होता है। कारण यह है कि चन्द्रलग्न का भी लग्न के समान ही महत्त्व माना गया है, तथा शुक्र विवाह एवं दाम्पत्य-सुख का प्रतिनिधि तथा कारक ग्रह होता है।
दक्षिण भारत के ज्योतिष ग्रन्थों में लग्न के स्थान पर द्वितीय भाव का ग्रहण किया गया है। अतः वहां जन्मकुण्डली में द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में मंगल होने पर कुज दोष ( मंगल दोष ) माना जाता है।
जिस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल दोष होने पर दांपत्य-सुख में हानि पहुँचने की सम्भावना बनती है, ठीक उसी प्रकार इन पांच स्थानों में शनि, सूर्य, राहु या केतु होने पर भी दाम्पत्य-सुख को हानि पहुँच सकती है।
मंगली दोष लग्न, चंद्रमा या शुक्र से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में पाप ग्रह होने पर होता है किन्तु इस योग का प्रभाव सदैव एक सा नहीं रहता बल्कि इस में घट-बढ़ होती रहती है। हमारी राय में जब यह योग लग्न में बनता है तो इसका दुष्प्रभाव अपेक्षाकृत कम या कमजोर होता है । इसकी तुलना में चंद्रमा से मंगली योग होने पर इस का दुष्प्रभाव सर्वाधिक होता है। कारण यह है कि लग्न ‘शरीर’ का, चंद्रमा ‘मन’ का तथा शुक्र राति (सेक्स) का प्रितिनिधित्व करता है। तथा इन दोनों की तुलना में राति-सुख सर्वाधिक महत्त्व रखता है।
क्यों की यह योग मंगल, शनि, सूर्य, राहु एवं केतु इन पांच ग्रहों से बनता है। पर मंगल से बनने वाला यह योग सर्वाधिक दुष्प्रभावी होता है।
सप्तम स्थान साक्षात् दाम्पत्य-सुख का प्रतिनिधित्व करता है। अतः सप्तम से बनाने वाला मंगलदोष अधिकतम हानिकारक होता है। लग्न में दुष्प्रभाव कुछ कम होता है। इससे कम दुष्प्रभाव चतुर्थ में उससे भी कम अष्टम में, सबसे कम दुष्प्रभाव द्वादश स्थान से बनने वाला मंगलदोष होता है। ज्योतिष शास्त्र का एक सर्वमान्य नियम यह है कि स्वराशि, मूल-त्रिकोण राशि, उच्च राशि तथा मित्र राशि में स्थित ग्रह भाव का नाश नहीं करता, बल्कि वह भाव के लिए फल की वृद्धि करता है। किन्तु नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित ग्रह भाव के लिए अनिष्ट होता है।अतः मंगली योग का ग्रह स्वराशि मूल त्रिकोण राशि या उच्च राशि में होने पर दोषदयक नहीं होता।
मंगली योग का परिहार Mangal Dosh Rectification
ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रन्थों में मंगली योग के परिहार का उल्लेख मिलता है। परिहार भी आत्म कुण्डलिगत एवं पर कुण्डलिगत भेद से दो प्रकार के होते हैं । वर या कन्या की कुंडली में मंगली योग होने पर उसी की कुण्डली को जो योग मंगली दोष को निष्फल कर देता है, वह परिहार योग आत्म कुण्डलिगत कहलाता है। तथा वर या कन्या इन दोनों में से किसी एक की कुण्डली में मंगल योग का दुष्प्रभाव दूसरे की कुण्डली के जिस योग से दूर हो जाता है, वह पर कुण्डलिगत परिहार योग कहा जाता है।
(1) वर कन्या में से किसी एक की कुंडली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है।
(1) वर कन्या में से किसी एक की कुंडली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है।
(2) जिस कुण्डली में मंगली योग हो यदि उसमे शुभ ग्रह केंद्र, त्रिकोण में तथा शेष पाप ग्रह त्रिषडाय में हो तथा सप्तमेश सप्तम स्थान में हो तो भी मंगली योग प्रभावहीन हो जाता है।
(3) यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो तो मंगल दोष प्रभावहीन हो जाता है।
(4) कुण्डली में लग्न आदि 5 भावों में से जिस भाव में भौमादि ग्रह के बैठने से मंगली योग बनता हो, यदि उस भाव का स्वामी बलवान् हो तथा उस भाव में बैठा हो या देखता हो साथ ही सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थान में न हों तो मंगली योग का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(5) वर कन्या में से किसी एक की कुण्डली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में मंगली योगकारक भाव में कोई पाप ग्रह हो तो भी मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है।
(6) जिस कुण्डली में सप्तमेश या शुक्र बलवान हों तथा सप्तम भाव इनसे युत-दृष्ट हो उस कुंडली में मंगल दोष का प्रभाव न्यून हो जाता है।
(7) मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ स्थान में होने पर, कर्क या मकर का मंगल सप्तम स्थान में होने पर, मीन का मंगल अष्टम में होने पर, तथा मेष या कर्क का मंगल व्यय स्थान में होने पर मंगल दोष नहीं लगता।
(8) मेष लग्न में स्थित, मंगल, वृश्चिक राशि में चतुर्थ भाव में स्थित मंगल, वृषभ राशि में सप्तम स्थान में मंगल, कुम्भ राशि में अष्टम स्थान में स्थित मंगल तथा धनु राशि में व्यय स्थान में स्थित मंगल मंगली दोष नहीं करता।
(9) मंगली योग वाली कुंडली में बलवान् गुरु या शुक्र के लग्न या सप्तम में होने पर अथवा मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष का प्रभाव दूर हो जाता है।
(10) यदि मंगली योगकारक ग्रह स्वराशि मूलत्रिकोण राशि या उच्च राशि में हो तो मंगली दोष स्वयं समाप्त हो जाता है।
हमारा अनुभव है कि जब किसी लड़की या लड़के की कुंडली में शुक्र एवं सप्तमेश बलवान् होकर शुभ स्थान में स्थित हों तथा सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उस कुंडली में मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है। इस स्थिति में मंगली दोष से किसी भी प्रकार की हानि की आशंका नहीं करनी चाहिए।
(3) यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो तो मंगल दोष प्रभावहीन हो जाता है।
(4) कुण्डली में लग्न आदि 5 भावों में से जिस भाव में भौमादि ग्रह के बैठने से मंगली योग बनता हो, यदि उस भाव का स्वामी बलवान् हो तथा उस भाव में बैठा हो या देखता हो साथ ही सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थान में न हों तो मंगली योग का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(5) वर कन्या में से किसी एक की कुण्डली में मंगली योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में मंगली योगकारक भाव में कोई पाप ग्रह हो तो भी मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है।
(6) जिस कुण्डली में सप्तमेश या शुक्र बलवान हों तथा सप्तम भाव इनसे युत-दृष्ट हो उस कुंडली में मंगल दोष का प्रभाव न्यून हो जाता है।
(7) मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ स्थान में होने पर, कर्क या मकर का मंगल सप्तम स्थान में होने पर, मीन का मंगल अष्टम में होने पर, तथा मेष या कर्क का मंगल व्यय स्थान में होने पर मंगल दोष नहीं लगता।
(8) मेष लग्न में स्थित, मंगल, वृश्चिक राशि में चतुर्थ भाव में स्थित मंगल, वृषभ राशि में सप्तम स्थान में मंगल, कुम्भ राशि में अष्टम स्थान में स्थित मंगल तथा धनु राशि में व्यय स्थान में स्थित मंगल मंगली दोष नहीं करता।
(9) मंगली योग वाली कुंडली में बलवान् गुरु या शुक्र के लग्न या सप्तम में होने पर अथवा मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष का प्रभाव दूर हो जाता है।
(10) यदि मंगली योगकारक ग्रह स्वराशि मूलत्रिकोण राशि या उच्च राशि में हो तो मंगली दोष स्वयं समाप्त हो जाता है।
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हमारा अनुभव है कि जब किसी लड़की या लड़के की कुंडली में शुक्र एवं सप्तमेश बलवान् होकर शुभ स्थान में स्थित हों तथा सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उस कुंडली में मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है। इस स्थिति में मंगली दोष से किसी भी प्रकार की हानि की आशंका नहीं करनी चाहिए।
।। इति शुभम् ।।
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बहुत सुन्दर l
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जवाब देंहटाएंNice
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