ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

सोमवार, 14 अक्टूबर 2019

digbali grah । दिग्बली ग्रह (दिशा बल)

digbali grah। ग्रह का दिग्बल (दिशा बल)

                
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ज्योतिष में ग्रहों के कई प्रकार के बल कहे गए हैं जिनमे षड्बल का विशेष महत्व है यह छः प्रकार के कहे गए हैं ।


जैसे -1स्थान बल--,  2-दिग्बल,  3-कालबल ,  4-चेष्टाबल,  5- नैसर्गिक बल और 6-दृष्टिबल


इन सभी बालों में हम यहां बात करेंगे दिग्बल अर्थात दिशा बल कौन सा ग्रह किस दिशा में बलवान होता है। दिशा बली ग्रह अपनी दिशा से लाभ देने वाला होता है। सूर्य से लेकर शनि तक सातो ग्रह कुंडली के अलग-अलग केंद्र भावों में दिग्बली होते हैं। प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव केंद्र भाव होता है। लग्न अर्थात प्रथम भाव पूर्व दिशा मे बुध और गुरु, चतुर्थ भाव उत्तर दिशा में शुक्र और चंद्र, सप्तम भाव पश्चिम दिशा में शनि और दशम भाव दक्षिण दिशा में सूर्य मंगल दिग्बली होते हैं अर्थात इन्हें दिशा बल प्राप्त हो जाता है।

दिशा बल प्राप्त ग्रह सामान्य ग्रह से ज्यादा बलवान हो जाता है इसका कारण है दिशा का प्रभाव और उस ग्रह का स्वभाव अब जैसे प्रथम भाव पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रातः कालीन का समय होता है और यह दिशा गुरु और बुध के अनुकूल होने से वह यहां प्रभवशाली हो जाते है वहीं शुक्र-चन्द्र अर्धरात्रि अर्थात चतुर्थ भाव की दिशा के अनुकूल ग्रह है, शनि शाम की वेला अर्थात सप्तम स्थान की दिशा में बल पाते हैं वहीं कुंडली के दशवें भाव जो दोपहर के समय का होता है वहां सूर्य और मंगल विशेष बलवान हो जाते हैं।
उपरोक्त चित्र द्वारा ग्रहों का बल समझा जा सकता है।

राहु और केतु किसी भी भाव या दिशा में दिग्बली नही होते है।यदि यह दिग्बली ग्रह के साथ होते है तब उस दिग्बली ग्रह का कुछ दिग्बल राहु केतु को मिलता है।इस तरह दिग्बली ग्रह जिस में दिशा बल से बली होता है तो ठीक उसके सामने अर्थात सप्तम में दिग्बल से हीन हो जाता है ग्रह दिशा बल से कमजोर होता है और अपने फलों को ठीक से प्रकट नहीं कर पाता आइए जानते है कि सूर्यादि ग्रहों के दिग्बली होने पर जातक को कैसे फलों की प्राप्ति होती है।

सूर्य का दिग्बल

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सूर्य ग्रह के कुंडली मे दिगबली होने पर जातक को आत्मिक रूप से मजबूत आत्मबल की प्राप्ति होती है, वह अपने फैसलों के प्रति काफी सदृढ़ होता है, उसमें कार्यों को पूर्ण करने की जो स्वेच्छा उत्पन्न होती है वह बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, वह लोगों के लिए भी मार्गदर्शक बनकर उभरता है, सभी के लिए एक बेहतर उदाहरण रूप में वह समाज के लिए सहायक सिद्ध होता है. जन समाज कल्याण की चाह उसमें रहती है, साथ ही अपने निर्देशों का कडा़ई से पालन कराने की इच्छा रखता है, वह अपने कामों में सुस्ती नहीं दिखाता है।

चंद्रमा का दिग्बल

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चन्द्र ग्रह के कुंडली में दिग्बली होने पर जातक शांत मानो भाव से सभी कामों को करने की ओर लगा रहता है, उसके मन में अनेक भावनाएं हर पल जन्म लेती रहती हैं पर वह अपने मन को नियंत्रित करना भी जानता है । वह धन वैभव से युक्त होता है, रत्नों एवं वस्त्राभूषणों का सुख प्राप्त होता है, वह लोगों को प्रिय लगता है। उसे सरकार की तरफ सहयोग व सम्मान मिलता है, व्यक्ति का आकर्षण एवं दूसरों के साथ आत्मिक रूप से जुड़ जाना बहुत प्रबल होता है, इसी कारण यह जल्द ही दूसरों के चहेते बन जाते हैं वह मान मर्यादा का पालन करने वाला होता है।

कुंडली मिलान

मंगल का दिग्बल

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मंगल ग्रह के कुंडली मे दिग्बली होने पर जातक का साहस और शौर्य बढ़ा रहता है, उसे किसी भी प्रकार का भय नहीं होता वह अपने मार्ग को स्वयं सुनिश्चित करने वाला होता है वह अपने नियमों तथा वचनों का पक्का होता है, वह विद्वान लोगों का आदर करने वाला होता है तथा दूसरों के लिए मददगार सिद्ध होता है, उसके कामों में स्वेच्छा अधिक झलकती है. किसी अन्य का वह दबाव नहीं बर्दास्त कर पाता, तथा अपने नेतृत्व की चाह रखने वाला होता है वह चाहता है की दूसरे भी उसकी इच्छा का आदर करें और उसके निर्देशों का पालन करने वाले हों, वह लोगों की रक्षा करने में आगे रहता है।

बुध का दिग्बल

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बुध ग्रह के कुंडली मे दिग्बली होने पर जातक का स्वभाव काफी प्रभावशाली बनता है, उसमें स्वयं के लिए विशेष अनुभूति प्रकट होती है, वह अपने अनुसार जीवन जीने की चाह रखने वाला होता है तथा किसी के आदेशों को सुनने की चाह उसमें नहीं होती है, व्यक्ति में चातुर्य का गुण प्रबल होता है, अपनी वाणी के प्रभाव द्वारा लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. जातक में स्नेह और सौहार्दय भी होता है वह दूसरों को अपने साथ जोड़ने वाला होता है तथा प्रेम की चाह रखता है, जातक जीवन में सुख सुविधाओं की चाह रखने वाला होता है वह जीवन को सामर्थ्य पूर्ण जीना चाहता है, हास्य-विनोद में वह पारंगत होता है और प्रसन्नचित रहने वाला होता है तथा वाणी का धुरंधर होता है।

कुंडली में शिक्षा के योग

बृहस्पति का दिग्बल

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वृहस्पति ग्रह के कुंडली मे दिग्बली होने पर जातक को सुखों की प्राप्ति होती है वह शरीरिक रूप से स्वस्थ रहता है तथा मन-वचन से मजबूत होता है, साथ ही विद्वेष की भावना से मुक्त रहते हुए काम करने वाला होता है, जातक दूसरों के मदत के लिए प्रयासरत रहता है और मददगार होता है, जातक को विद्वान लोगों की संगति मिलती है तथा गुरूजनों की सेवा करके प्रसन्न रहता है, वह सुखी होता है व आर्थिक रूप से संतुष्ट रहता है, शत्रुओं के भय से मुक्त रहता है तथा निडरता से काम करने वाला होता है, जातक के विचारों को सभी लोग बहुत सम्मान देते हैं।

शुक्र का दिग्बल

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शुक्र ग्रह के कुंडली मे दिगबली होने पर जातक के जीवन में सौंदर्य का आकर्षण प्रबल होता है, साजो सामान के प्रति उसे बहुत लगाव रहता है तथा वह अपने रहन सहन को भी बहुत उच्चकोटि का जीने की चाहत रखने वाला होता है, उसमे स्वयं को सजाने संवारने की इच्छा खूब होती है वह अपने बनाव श्रृंगार पर खूब धन व समय व्यतीत कर सकता है, जिससे वह दूसरों के आकर्षण का आधार भी होता है, लोग इनकी ओर स्वत: खिंचे चले आते हैं, ऐसा जातक देश-विदेश में सम्मानित होता है और खूब धन अर्जित करता है। साथ ही दूसरों के लिए समर्पण का भाव भी रखता है।


कुंडली में घर लेने के योग  

शनि का दिग्बल

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शनी ग्रह के कुंडली में दिग्बली होने पर जातक ब्राह्मण व देवताओं का भक्त तथा सेवक होता है, वह दूसरों के लिए सेवाकार्य करने वाला होता है, गीत संगीत तथा नृत्य इत्यादि में जातक की रूचि होती है,वह चतुरता पूर्ण कार्यों को अंजाम देने की कला का जानकार होता है तथा व्यापार कार्यों में निपुण रहता है, नीतिपूर्ण व न्यायपूर्ण जीवन जीना ही उसका ध्येय होता है।

।। इति शुभम् ।।

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