Industrial vastu I फैक्ट्री का वास्तु शास्त्र
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फैक्ट्री का वास्तु शास्त्र |
अपने देश में लगभग हर छोटे-बड़े सहरों में औद्योगिक विकास के लिए जमीन निर्धारित की जाती जिसे इडस्ट्रीयल एरिया कहा जाता है। जब भी कोई होनहार व्यक्ति अपने प्रोडक्ट के लिए किसी फैक्ट्री की रूप-रेखा बनाता है तो सबसे पहले वह ऐसी ही एरिया में जमीन अथवा प्लाट देखना सुरु करता है। क्यों कि इस स्थान पे फैक्ट्री के लिए समुचित बिजली-पानी, कच्चे व तैयार माल को ले जाने और ले आने के लिए सही ट्रांसपोर्ट सिस्टम, सड़को आदि की व्यवस्था निर्धारित होती है। इससे फैक्ट्री लगाकर वह अपने माल का उत्पादन कर के अपना व्यापार विकसित कर सकता हैं।
फैक्ट्री निर्माण के लिए वास्तु नियमों का पालन नितांत आवश्यक है। जैसे हम आज अपने घर निर्माण में वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों को मानते हैं और उनको लागू कर के उनका लाभ उठाते हैं ठीक उसी प्रकार फैक्ट्री निर्माण में भी वास्तु सिद्धांतों व उनके सूत्रों का पालन करना चाहिए जिससे उस स्थान पे पंच तत्वों का ठीक से समन्वय हो और उस फैक्ट्री में जिस भी किसी चीज का निर्माण हो रहा है वह सही तथा फिट हो और जब वह वहां से निर्मित होकर बाजार में पहुंचे तो अपनी गुणवत्ता से उपभोक्ताओं का दिल जीत सके जिससे मालिक को उसका अच्छा मूल्य प्राप्त हो और वह लाभवन्तित हो सके।
तो आइए मित्रों मैं आप का अपना / वास्तु सलाहकार / पं.उदयप्रकाश शर्मा आप को बताऊँगा कि वास्तु सिद्धांत के अनुसार आप जब भी अपनी फैक्ट्री के लिए ऐसी भूमि का चयन करें तो यह ध्यान रक्खें कि प्लॉट का आकार वर्गाकार, आयताकार अथवा सिंहमुखी प्लॉट हो सिंहमुखी प्लॉट उसे कहते हैं जिस प्लॉट की आगे से चौड़ाई ज्यादा हो व पीछे के तरफ की एरीया कम हो, पर यह ध्यान रखना जरुरी होता है कि ऐसे प्लॉट सिर्फ पूर्वमुखी अथवा उत्तरमुखी ही ठीक होते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्यवेधी प्लॉट भी फैक्ट्री निर्माण करने के लिए अति शुभ माना गया है, सूर्यवेधी अर्थात जिस प्लॉट की पूर्व व पश्चिम की भुजाएं लम्बी तथा उत्तर व दक्षिण की भुजाएं कम हो ऐसा प्लॉट भी आप के उद्योग के लिए निःसंदेह बहोत ही शुभ फल देने वाला साबित होगा।
जब ऐसा भूखंड Plot प्राप्त हो जाये तब किसी कुशल वास्तुशास्त्री से चयनित भूमि के ऊर्जा का मापन करवाएं, जिससे ज्ञात हो सके कि इस भूमि का स्पंदन प्रवाह, गंध, गुण कैसा है, वहां पृथ्वी तत्व व उसका बल कैसा है?, वहां कास्मिक एनर्जी (अन्तरिक्ष की पवित्र उर्जा) का संचार सही मात्रा में तो है न?, तथा वहां ग्लोबल ऊर्जा का प्रवाह कैसी स्थिति में है?, वहां जिओपैथि स्ट्रेस लाईन तो नहीं है? इस तरह की कई बातें है जो आप को आप का वास्तुशास्त्री वहां का वास्तु विजिट कर के ज्ञात होने पर बतायेगा जिससे फैक्ट्री की रुपरेखा बनाने में आसानी होगी।
जब ऐसा भूखंड Plot प्राप्त हो जाये तब किसी कुशल वास्तुशास्त्री से चयनित भूमि के ऊर्जा का मापन करवाएं, जिससे ज्ञात हो सके कि इस भूमि का स्पंदन प्रवाह, गंध, गुण कैसा है, वहां पृथ्वी तत्व व उसका बल कैसा है?, वहां कास्मिक एनर्जी (अन्तरिक्ष की पवित्र उर्जा) का संचार सही मात्रा में तो है न?, तथा वहां ग्लोबल ऊर्जा का प्रवाह कैसी स्थिति में है?, वहां जिओपैथि स्ट्रेस लाईन तो नहीं है? इस तरह की कई बातें है जो आप को आप का वास्तुशास्त्री वहां का वास्तु विजिट कर के ज्ञात होने पर बतायेगा जिससे फैक्ट्री की रुपरेखा बनाने में आसानी होगी।
आइये अब जानते हैं दिशा और वास्तु के अनुसार कारखाने की प्लानिग के बारे में अर्थात पूर्व, पश्चिम, उत्तर अथवा दक्षिण चाहे किसी भी दिशा का भूखंड (प्लॉट) हो सकता है। उस प्लॉट में कौन से स्थान में क्या रखा जाए, मशीने कहाँ स्थापित की जाएँ, कच्चा माल कहाँ रखा जाए, मुख बिल्डिंग व प्रसासनिक भवन कहाँ हो, तैयार माल किस दिशा रखा जाए, स्टाफ कवार्टर कहाँ हो, फैक्ट्री में जनरेटर व बॉययलर किस दिशा में रखना शुभ है, कैंटीन व पिने के पानी की क्या व्यवस्था हो जिससे उस फैक्ट्री में कार्यरत सभी लोग निरोग, उर्जावान व शुरक्षित हों और फैक्ट्री उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पे अग्रसर हो।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री का मुख्य द्वार कहाँ हो?
वैसे तो सभी दिशाओं का अपना प्रभाव होता है पर पूर्व या उत्तर दिशा फैक्ट्री के मुख्य द्वार के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। दिशा स्वामी सूर्य तथा बुध के प्रभाव से उच्च कोटि का ब्यापार, धन का आगमन प्रसिद्धि और यश प्राप्त होता है। वास्तु अनुसार औद्योगिक भूखंड के चारों ओर मार्ग होना बहोत ही शुभ होता है क्यों कि चारो दिशाओं में मार्ग होने से उस उद्योग के लिए ट्रांसपोर्ट व्यवस्था उत्तम प्रकार से हो पाती है।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री की मुख्य बिल्डिंग भूखंड में कहाँ हो?
फैक्ट्री के मुख्य विल्ड़िंग का कंस्ट्रक्सन करते समय ध्यान रखना चाहिए कि फैक्ट्री का मुख्य भवन प्लॉट के पश्चिमी या दक्षिणी भाग में इस प्रकार बनाना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर में खाली जगह अधिक रहे। इससे पूर्व और उत्तर खुला और भारहीन होगा जीससे फैक्ट्री में इन शुभ दिशाओं की शुभ उर्जा अधिक से अधिक प्राप्त होगी। वास्तु सिद्धांत के अनुसार नैरित्य (दक्षिण/पश्चिम) में पृथ्वी तत्व का गुण विद्दमान है जिससे इस दिशा में भारी निर्माण उद्योग को स्थायित्व प्रदान करने में सक्षम होता है और डिस्ट्रीब्युटर्स व मार्किट पे फैक्ट्री की पकड़ मजबूत होती है।
फैक्ट्री के मुख्य भवन व भूखंड के ब्रह्म स्थान पर कोई काॅलम, बीम नहीं होना चाहिए। यह आकाश तत्व का स्थान है यह भूखंड का नाभि स्थल होता है अतः यहां वजन होने से आकाश तत्व पीड़ित होता है और संबंधित उद्योग के बड़े ऑर्डर अथवा बड़े कार्य नहीं होते अथवा अड़चने आती हैं जिससे उद्योग को ऊंची सफलता प्राप्त करने में समस्या होती है।
फैक्ट्री के मुख्य भवन व भूखंड के ब्रह्म स्थान पर कोई काॅलम, बीम नहीं होना चाहिए। यह आकाश तत्व का स्थान है यह भूखंड का नाभि स्थल होता है अतः यहां वजन होने से आकाश तत्व पीड़ित होता है और संबंधित उद्योग के बड़े ऑर्डर अथवा बड़े कार्य नहीं होते अथवा अड़चने आती हैं जिससे उद्योग को ऊंची सफलता प्राप्त करने में समस्या होती है।
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वास्तु अनुसार फैक्ट्री में भारी मशीनरी कहाँ स्थापित हों?
फैक्ट्री में भारी मशीनें दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में लगायी जा सकती हैं। S/W नैऋत्य दिशा इसके लिए सर्वोत्तम होती है। इससे उद्योग को बल व स्थायित्व प्राप्त होता है और इस दिशा में मशीने अपना पूर्ण कौशल दिखाती हैं ।
भूखंड के ब्रह्म स्थान पर कोई भारी सामान या भारी मशीनरी नहीं रखनी चाहिए अन्यथा मालिक आर्थिक दबाव में रहेगा।
भूखंड के ब्रह्म स्थान पर कोई भारी सामान या भारी मशीनरी नहीं रखनी चाहिए अन्यथा मालिक आर्थिक दबाव में रहेगा।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में अग्नि से संबंधित स्थान कहाँ हो?
फैक्ट्री के आग्नेय कोण में जेनरेटर, बाॅयलर, भट्टी, बिजली का मीटर डीजल आदि का भंडारण करने का स्थान बनाना चाहिए। यह दिशा प्रणोदक उर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। जिससे अग्नि तत्व संतुलित रहता है और उद्योग में ऊर्जा का संचालन सही रूप से होता है इस दिशा का स्वामी शुक्र ग्रह है जो धन-वैभव का कारक ग्रह है जिससे प्रभाव से उद्योग में धन आने का मार्ग निरंतर खुला रहता है।
फैक्ट्री या कारखाने की रूपरेखा बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रक्खें कि बीम के नीचे कोई भी कर्मचारी न बैठे और न ही कोई प्रमुख मशीन होनी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो न तो वह कर्मचारी अपना काम ठीक से कर पायेगा और न ही वह मशीन और वह मशीन निरंतर खराब ही रहेगी जिससे फैक्ट्री का कार्य प्रभावित होता रहेगा ।
आज विज्ञान का युग हैं। आज आधुनिक रूप से आधुनिक यंत्रो द्वारा सटीक रूप से Positive - Negative ऊर्जाओं का सोधन कर पाना संभव हुआ है अगर संबंधित स्थान पे नकारात्मक ऊर्जा है अथवा ऊर्जा का अभाव है अर्थात वहां शून्य ऊर्जा है तो वहां प्राण ऊर्जा का सामंजस्य स्थापित करने हेतु धरती के चुम्बकीय क्षेत्र उत्तरी ध्रुव- दक्षिणी ध्रुव व अंतरिक्ष की शुभ ऊर्जाओं को आकर्षित करना पड़ता है जिसके लिए आवस्यकता अनुसार वैज्ञानिक यंत्र, पिरामिड, ऊर्जा प्लेट, क्रिस्टल एवं रत्न-उपरत्नों के कोणीय प्रभाव, तथा धातुवों से बनी विभिन्न कोणीय आकृतियों का प्रयोग करना होता है। कोई नकारात्मक दोष वहां पर है तो पूजा-हवन भी करवाना पड़ता है I
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फैक्ट्री के नैऋत्य कोण में कच्चे माल raw material के लिए स्टोर बनाया जा सकता है, वहीं जब माल तैयार हो जाये तो उस तैयार माल finished goods को वायव्य कोण में रखना चाहिए, इससे माल जल्दी बिकता है। क्यूँ कि वायव्य कोण चन्द्रमा की दिशा है, और यह दिशा वायु तत्व प्रधान होने से तैयार माल वहां टिककर रहता नहीं बल्कि वायु के वेग से अपने सही स्थान (मार्किट और ग्राहक) तक पहुंच जाता है, और नए आर्डर का श्रोत निरंतर खुला रहता है ।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में Administrative office
प्रसासनिक कार्यालय Administrative office उत्तर दिशा में बनाया जा सकता है। उत्तर दिशा बुध ग्रह प्रधान है और हम सभी जानते हैं कि बुद्ध देव बुद्धि के देवता हैं, व्यापर के कारक ग्रह हैं, बिना बुध के आशीर्वाद के व्यापर में सफलता प्राप्त कर पाना असंभव है, क्यूँ कि प्रसासनिक कार्य करने वालों को हमेसा सही और त्वरित फैसले लेने पड़ते हैं, बुद्यधिमानी से कार्य करना पड़ता है, इसीलिए यहां प्रशासनिक कार्यालय होने से प्रसासनिक कर्मचारी के काम सटीक होते हैं और वह विवेक से कार्य करते हैं ।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में Workshop (कार्यशाला)
मशीनों की मरम्मत व रखरखाव की कार्यशाला Workshop पश्चिम में बनाना चाहिए। पश्चिम दिशा ग्रह देव शनि की है और शनि देव कल-पुर्जे और उनकी मरम्मत आदि पे अपना अधिकार रखते हैं। जिससे इस स्थान पे Workshop होने से मरम्मत का कार्य सुचारू रूप से चलता है।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में रिसर्च एवं डेवलपमेंट R And D
वास्तु में रिसर्च एवं डेवलपमेंट R and D यूनिट पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में बना सकते हैं। पूर्व दिशा पे भगवान सूर्यदेव का अधिपत्य है जो नयी योजना व उसको लागु करने के लिए अपना प्रभाव देते हैं। वहीँ पश्चिम दिशा पे आधिपत्य रखने वाले शनी देव किसी भी कार्य में निरंतर लगे रहने की शक्ति प्रदान करते हैं जो शोध के लिए धैर्य प्रदान कर नए कार्य को प्रतिपादित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं।
फैक्ट्री में स्टाफ कवार्टर भूखंड के आग्नेय दिशा अथवा वायव्य दिशा में बनाने चाहिए अगर वायव्य दिशा में बनाया जाये तो पश्चिम वायव्य में बनाना चाहिए वहीँ फैक्ट्री के प्रशासनिक अधिकारियों के क्वार्टर नैऋत्य व पश्चिम में बनाने चाहिए।
असेंबलिंग यूनिट पूर्व या उत्तर में बनाया जा सकता है।
फैक्ट्री में स्टाफ कवार्टर भूखंड के आग्नेय दिशा अथवा वायव्य दिशा में बनाने चाहिए अगर वायव्य दिशा में बनाया जाये तो पश्चिम वायव्य में बनाना चाहिए वहीँ फैक्ट्री के प्रशासनिक अधिकारियों के क्वार्टर नैऋत्य व पश्चिम में बनाने चाहिए।
असेंबलिंग यूनिट पूर्व या उत्तर में बनाया जा सकता है।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में वाहनों की पार्किंग कहाँ हो ?
फैक्ट्री में पार्किंग के लिए भी वास्तु सिद्धांत मिलते हैं। दो पहिया व हल्के वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था भूखंड के आग्नेय दिशा में करनी चाहिए वहीँ बड़े तथा भारी वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था वायव्य दिशा में करनी चाहिये।
फैक्ट्री की ऊँची चिमनी जिससे बॉययलर का धुवाँ निकलता है कभी भी ईशान कोण में नहीं होनी चाहिए। इससे फैक्ट्री कभी तरक्की नहीं कर पायेगी यह दोष सब अच्छाइयों पर भारी पड सकता है जिसके लिए इसका विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। इस लिए चिमनी को सदा अग्नि कोण अथवा दक्षिण दिशा में बनवाना शुभ होगा ।
लगभग सभी फैक्ट्री में केमिकल्स की अहम् भूमिका होती है, जिससे इसका बड़ा भंडारण कच्चे माल के रूप में फैक्ट्री में करना पड़ता है, यह अति ज्वलनशील होते हैं, इसलिए सावधानी से इनका भंडारण फैक्ट्री के मुख्य भवन के दक्षिण दिशा अथवा दक्षिण पूर्व दिशा (अग्नि दिशा) में करना चाहिए।
लगभग सभी फैक्ट्री में केमिकल्स की अहम् भूमिका होती है, जिससे इसका बड़ा भंडारण कच्चे माल के रूप में फैक्ट्री में करना पड़ता है, यह अति ज्वलनशील होते हैं, इसलिए सावधानी से इनका भंडारण फैक्ट्री के मुख्य भवन के दक्षिण दिशा अथवा दक्षिण पूर्व दिशा (अग्नि दिशा) में करना चाहिए।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में वेल्डिंग का स्थान कहाँ हो ?
फैक्ट्री में वेल्डिंग के कार्य के लिए आग्नेय दिशा सदा शुभ होती है। अगर इस दिशा में वेल्डिंग का स्थान बनाना संभव न हो तो दक्षिण दिशा व उत्तर पश्चिम अर्थात वायव्य दिशा में वेल्डिंग के लिए स्थान दिया जा सकता है।
लोहे के भंडार की व्यवस्था पश्चिम में करनी चाहिए। वास्तु सिद्धान्त के अनुसार यह स्थान शनि देव का है और लोहे धातु पे शनि का अधिकार है इस दिशा में संभव न हो तो दक्षिणी/पश्चिम (नैरित्य) दिशा में रख सकते हैं।
लोहे के भंडार की व्यवस्था पश्चिम में करनी चाहिए। वास्तु सिद्धान्त के अनुसार यह स्थान शनि देव का है और लोहे धातु पे शनि का अधिकार है इस दिशा में संभव न हो तो दक्षिणी/पश्चिम (नैरित्य) दिशा में रख सकते हैं।
फैक्ट्री या कारखाने की रूपरेखा बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रक्खें कि बीम के नीचे कोई भी कर्मचारी न बैठे और न ही कोई प्रमुख मशीन होनी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो न तो वह कर्मचारी अपना काम ठीक से कर पायेगा और न ही वह मशीन और वह मशीन निरंतर खराब ही रहेगी जिससे फैक्ट्री का कार्य प्रभावित होता रहेगा ।
वास्तु अनुसार फैक्ट्री में वर्क-स्टेशन कैसा हो ?
फैक्ट्री में वर्कस्टेसन बनाते समय यह जरुर ध्यान रखना चाहिए की व्यवस्था कुछ येसी हो की कार्य करते समय अत्याधिक कर्मचारियों का मुंह उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए। हमारी पृथ्वी पर प्राण ऊर्जा का संचार उसके उत्तरीय ध्रुव से ही होता है जिससे उत्तर अथवा पूर्वाभिमुख व्यक्ति अत्यधिक समय तक थकावट महशुस नहीं करता और निरंतर कार्य में संलग्न रहता है ।
फैक्ट्री-कारखाने के ईशान कोण में कभी भी अंधेरा या गंदगी नहीं होनी चाहिए। ना ही यहां (कूड़ा-करकट) स्क्रब डालें इससे मालिक के साथ-साथ वहां कार्य करने वाले सभी मानसिक तनाव में रहेंगे। भूखंड के इस दिशा में जगह पर्याप्त हो तो कुछ स्थान में फुलवारी लगनी चाहिए, कुछ घास रोपनी चाहिए, यह स्थान साफ सुथरा और हल्का और भूखंड के अन्य स्थान से निचा होना चाहिए ।
फैक्ट्री-कारखाने के ईशान कोण में कभी भी अंधेरा या गंदगी नहीं होनी चाहिए। ना ही यहां (कूड़ा-करकट) स्क्रब डालें इससे मालिक के साथ-साथ वहां कार्य करने वाले सभी मानसिक तनाव में रहेंगे। भूखंड के इस दिशा में जगह पर्याप्त हो तो कुछ स्थान में फुलवारी लगनी चाहिए, कुछ घास रोपनी चाहिए, यह स्थान साफ सुथरा और हल्का और भूखंड के अन्य स्थान से निचा होना चाहिए ।
फैक्ट्री में कहीं भी कबाड़ हो उसे यथासीघ्र बेच देना चाहिए, इकट्ठा नहीं करना चाहिए।
भूखंड के ब्रह्म स्थान पर कोई भारी सामान या भारी मशीनरी नहीं रखनी चाहिए अन्यथा मालिक आर्थिक दबाव में रहेगा।
अपने फैक्ट्री में पीने लायक और साफ पानी का भंडारण हमेशा N/E ईशान्य दिशा में रक्खें और गंदे और वेस्टेज पानी को पश्चिमी उत्तर दिशा से निकालें व भंडारण करें।
industrial vastu consultant uday prakash sharma
इसके अलावां अगर पहले से ही उद्योग स्थापित है जिसमे अनचाही अड़चने आ रही हैं तो मित्रों मैं आप का अपना /वास्तु सलाहकार/ factory vastu expert uday prakash shrama आप से इतना ही कहना चाहूंगा कि अपने किस्मत को कोसने के बजाय हमे यह समझना चाहिए कि इस युग में मृत्यु को छोड़कर हर समस्या का समाधान होता है, बात है जागरूकता की। मैंने अपने वर्षों के अनुभव में छोटे बड़े कई उद्योगों का सफलता पूर्वक उपचार किया है जिससे बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।
आज विज्ञान का युग हैं। आज आधुनिक रूप से आधुनिक यंत्रो द्वारा सटीक रूप से Positive - Negative ऊर्जाओं का सोधन कर पाना संभव हुआ है अगर संबंधित स्थान पे नकारात्मक ऊर्जा है अथवा ऊर्जा का अभाव है अर्थात वहां शून्य ऊर्जा है तो वहां प्राण ऊर्जा का सामंजस्य स्थापित करने हेतु धरती के चुम्बकीय क्षेत्र उत्तरी ध्रुव- दक्षिणी ध्रुव व अंतरिक्ष की शुभ ऊर्जाओं को आकर्षित करना पड़ता है जिसके लिए आवस्यकता अनुसार वैज्ञानिक यंत्र, पिरामिड, ऊर्जा प्लेट, क्रिस्टल एवं रत्न-उपरत्नों के कोणीय प्रभाव, तथा धातुवों से बनी विभिन्न कोणीय आकृतियों का प्रयोग करना होता है। कोई नकारात्मक दोष वहां पर है तो पूजा-हवन भी करवाना पड़ता है I
अतः आप के औद्योगिक परिसर में फैक्ट्री-कारखाने में कोई वास्तु दोष हो तो निःसंकोच आप को किसी कुशल वास्तुशास्त्री से संपर्क कर उनसे परामर्श लेना चाहिए और संबंधित स्थान का पूरे वैज्ञानिक विधि से जांच करवानी चाहिए मित्रों अगर वहां ऐसा कुछ भी हो जिससे अनचाही पीड़ा और उद्योग में असफलता मिल रही हो तो अपने इष्टदेव को प्रणाम कर उनसे आज्ञा ले उस समस्या का उचित उपाय करवाना चाहिए। और अपने औद्योगिक विकाश को गति देनी चाहिए।
।। इति शुभम् ।।
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