kundli me shiksha yog । कुंडली में शिक्षा योग
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सच तो यह है कि शिक्षा से इतने लाभ हैं कि उनका वर्णन करना कठिन है। इस संदर्भ में यहाँ केवल इतना कह देना ही पर्याप्त होगा की शिक्षा माता के सामान पालन-पोषण करती है, पिता के समान उचित मार्ग-दर्शन द्वारा अपने कार्यों में लगाती है तथा पत्नी की भांति सांसारिक चिन्ताओं को दूर करके प्रसन्नता प्रदान करती है। शिक्षा के ही द्वारा हमारी कीर्ति का प्रकाश चारों ओर फैलता है तथा शिक्षा ही हमारी समस्याओं को सुलझाती है एवं हमारे जीवन को सुसंस्कृत करती है।
शिक्षा के लिए ज्योतिष शास्त्र में बहोत कुछ लिखा गया है।
जन्मकुण्डली के चतुर्थ स्थान से विद्या का और पंचम से बुद्धि का विचार किया जाता है। विद्या और बुद्धि में घनिष्ठ संबंध है। दशम भाव से विद्या जनित यश का विचार किया जाता है। कुंडली में बुध तथा शुक्र की स्थिति से विद्वत्ता तथा कल्पना शक्ति का और बृहस्पति से विद्या विकास का विचार किया जाता है। द्वितीय भाव से विद्या में निपुणता, प्रवीणता इत्यादि का विचार किया जाता है।
वास्तु अनुसार घर में कैसा हो बच्चों का कमरा?
ज्योतिष में उच्च शिक्षा के कुछ महत्वपूर्ण योग
* दूसरे भाव के मालिक व पंचम भाव के मालिक में राशि परिवर्तन होने तथा शुभ ग्रह की दशा हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं।
* शुक्र व गुरु की युक्ति व्यक्ति को उच्च शिक्षा देती हैं।
* दशमेष उच्च का हों तथा पंचमेश से समबंध बनायें तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता हैं। इस योग में जातक ऐडवाइजर, प्रबंधक(मैनेजर), प्रिन्सिपल, व लीडर होता हैं।
* दूसरे व पंचम भाव के मालिक एक साथ त्रिकोण (5,9) स्थान में स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं।
* बुध व गुरु उच्च के हों अथवा बली हो, दूसरें स्थान का मालिक तीसरे या अष्टम भाव में मित्र राशी का हो तो जातक विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं।
* दूसरे या पांचवे स्थान का मालिक बली हो तथा लग्न में शुभ ग्रह होने पर जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती हैं।
* जन्म कुंडली में चंद्र उच्च का हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त हो तो भी जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं।
* यदि अष्टम या तृतिय भाव का मालिक शुभ ग्रह हो एवम उच्च का हो साथ ही दूसरे या पांचवे स्थान में स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं।
* शनि बली हो और मित्र लग्न हो, 1,2,5,10 स्थान में स्थित हो तो बडी उम्र तक शिक्षा प्राप्त करता हैं। और शिक्षा के क्षेत्र में बडी उपलब्धी हासिल करता हैं।* जन्म कुंडली में गुरु, शुक्र व बुध की युक्ति पंचम द्वितिय या नवम स्थान में हो तो जातक विद्वान होता हैं व उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं। ऐसा जातक विभिन्न विषयों मे पारंगत होता हैं। अपने कुल व परिवार के नाम को रोशन करने वाला होता हैं। इस योग को सरस्वति योग के नाम से भी जाना जाता हैं।
* जन्म कुंडली में पापी ग्रह उच्च के हो व लग्नेश के मित्र हो, तथा पांचवें भाव में शुभ ग्रहों का प्रभाव उच्च शिक्षा के योग बनाता हैं।
* जन्मकुण्डली में विद्या कारक बृहस्पति और बुद्धि कारक बुध दोनों एक साथ हों, तो जातक शिक्षा और बुद्धिमत्ता उच्च कोटि की होती है और उसे समाज मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
* इसी प्रकार चतुर्थ स्थान का स्वामी लग्न में अथवा लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में हो या बुध लग्नस्थ हो और चतुर्थ स्थान बली हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है।
* यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र नवम स्थान में हों, तो जातक की शिक्षा उच्च कोटि की होती है।
* यदि बुध और गुरु के साथ शनि नवम स्थान में हो, तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है।
* उच्च विद्या के लिए बुध एवं गुरु का बलवान होना जरूरी है। द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और नवम भावों का संबंध बुध से हो, तो शिक्षा ऊँचे स्तर होती है।
* जन्म कुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है, जिसका स्वामी बृहस्पति है। यह भाव उच्च शिक्षा तथा उसके स्तर को दर्शाता है। यदि इसका संबंध पंचम भाव से हो, तो जातक की शिक्षा अच्छी होती है।
इन ग्रहस्थिति का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब कुंडली के योगकारक एवं शुभ ग्रह की महादशा हो। कुंडली के अनिष्टकारी ग्रहों की दशा में न्यून फल की प्राप्ति होती है।
शिक्षा प्राप्ति में कुछ रुकावट वाले योग इस प्रकार होते हैं।
* यदि पंचमेश 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो या किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हो या अशुभ ग्रह से देखा जाता हो, तो जातक को शिक्षा प्राप्त करने में बाधा आती हैं।
* ज्यादातर शिक्षा प्राप्ति के समय यदि राहु की महादशा आ जाये तो जातक का मन विद्या अध्यन के प्रति ऊब जाता है और वो अन्य सांसारिक पचडों में उलझ जाता है ।
* जातक की कुंडली में अगर गुरु या बुध 3, 6, 8 या 12 वें भावगत हो, शत्रुगृही हो, तो शिक्षा प्राप्ति में अनावश्यक अवरोध खडा हो जाता है।
जातक की जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो अथवा अशुभ ग्रहो का संबंध किसी भी रूप में द्वितीय भाव को दूषित कर रहा हो तो विद्या प्राप्ति में रूकावट समझना चाहिये. इसी समय में अगर जातक की दशा अंतर्दशाओं में द्वितियेश का अष्टम भाव से संबंध बन जाये तो निश्चय ही शिक्षा में बाधा आयेगी।
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* पंचम भाव, पंचमेश, तृतीयेश, या नवमेष पर अशुभ प्रभाव हो, तो विद्या अध्ययन में व्यवधान आ जाता हैं धन, विद्या, वाणी एवं स्वयं के कोष के लिये द्वितीय भाव से विचार करना चाहिए।
शिक्षा में एक बहुत बड़ी बाधा होती है घर में वास्तु दोष का होना, तो आईये पाठकों वास्तु अनुसार बच्चों का कमरा कैसा हो जिससे वह घर में मन लगाकर शिक्षा ग्रहण कर सकें ।
वास्तु अनुसार घर में कैसा हो बच्चों का कमरा?
।।इति शुभम्।।
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