रत्न विज्ञान ज्योतिष
प्राचीन काल से ही मनुष्य ने जीवन को सफल, शांत एवं निर्विघ्न बनाने के लिए, अदृश्य शक्तियों को अनुकूल करने के लिए, ग्रहों की शक्ति बढ़ाने के लिए बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग किया है। रत्नों के प्रभाव को लेकर प्राचीनकाल से ही अनेक मान्यताएँ संसार भर में प्रचलित हैं। ज्योतिष शास्त्र में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मनोनुकूल फल प्राप्त करने के लिए विभिन्न रत्नों को धारण करने के विषय में बतलाया गया है। आज के आधुनिक युग में हमारे वैज्ञानिको ने भी रत्नों के प्रभाव को माना है, उनके ईजाद किये गए ऊर्जा मापक यंत्रों ( औरा स्कैनर आदि..) की कसौटी पर रत्न खरे उतरे हैं, जाँच में किसी व्यक्ति का ऊर्जा क्षेत्र बहोत थोडा ( सिमित )होने पर उसकी जन्मकुण्डली के अनुशार जैसे ही उसके अनुकूल रत्न को धारण कराया जाता है, तत्काल ही उसकी “औरा” ऊर्जा क्षेत्र बढ़ जाता है।![]() |
ज्योतिष राशि रत्न |
ग्रह और रत्नों का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है। सौर मंडल में स्थित सभी ग्रह, नक्षत्र और तारे अपनी रश्मियाँ भूमण्डल पे विखेरते रहते हैं। जिसका प्रभाव जिव-जंतु वनस्पति सभी पर पड़ता है। यह रश्मियाँ देखने में भले ही सफ़ेद रंग की प्रतीत होती हों परंतु वास्तव में यह सात रंगों से युक्त होती हैं। जिसे अंग्रेजी में ( VIBGYOR ) कहते हैं। यह बैगनी, आसमानी, पिला, लाल, नीला, हरा तथा नारंगी होती हैं। इसकी स्पस्ट झलक वर्षा ऋतु में इंद्र धनुस के रूप में दिखाई देती है । इस इंद्र धनुस में सात रंगो को भली भांति देखा जा सकता है। इन्ही सात रंगो में से हर ग्रह रंग विशेष से प्रभावित होता है ।
उदाहरण के लिए जैसे सूर्य का रंग लाल होता है, चंद्र को हम दूधिया सफ़ेद देखते हैं तो वहीँ गुरु पीलेपन की आभा वाला ग्रह है। अब जन्म के समय पर ब्रह्माण्ड में जो ग्रह ज्यादा कमजोर होगा उस ग्रह से सम्बंधित हमारे जीवन के उन पहलुओं का जिनका की वह प्रतिनिधित्व करता है आभाव देखने को मिलेगा । अगर उसी ग्रह की दशा-अंतर्दशा है तो हमें उसके फल को प्राप्त करने में अत्यंत कठिनाई महसूस होगी। ऐसे में उस ग्रह से सम्बंधित “रत्न” को धारण कर के उसकी आभा को बढ़ाया जा सकता है।
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रत्न विज्ञान ज्योतिष |
रुद्राक्ष धारण करने से क्या लाभ होता है
रत्न धारण अंगूठी, पेंडल या अन्य प्रकार से किया जा सकता है। जीवन के प्रारम्भ से लेकर मृत्यु तक, जीवन संघर्ष के दौरान कदम कदम पर विभिन्न क्षेत्रों में बाधाओं से मुक्ति और सफलता के लिए रत्नों को धारण किया जा सकता है। कुछ रत्न आजीवन पहने जा सकते हैं तथा कुछ रत्न केवल दशा-अंतर्दशा या विशेष गोचरीय स्थिति में पहनने चाहिए। रत्न जहां भाग्योन्नति में सहायक होते है वहीं यदि रत्नों को कुंडली जाँच के अनुसार धारण करवाया जाय तो ऐ रत्न जातक को रोगो से लड़ने की शक्ति भी देते हैं।
वहीँ आयुर्वेद में रत्नों की भस्म द्वारा रोग निवारण के प्रयोग बताए गए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि रत्नों में ग्रहों की ऊर्जा होती है। जो जातक को स्वास्थ्य बल भी प्रदान करती है। आजकल देखने में आता है कि कोई भी किसी को कुछ भी रत्न बता देता है और जातक बिना कुछ विचार किये धारण भी कर लेता है, वह सोचता है की अगर यह रत्न ने मेरे मित्र को अच्छा फल, और प्रगति दे सकता है तो मुझे भी धारण करने पे वैसी ही ख़ुशी और प्रगति देगा तो यह तर्क गलत है मै कहना चाहूंगा कि जब कोई “रत्न” अपने ग्रहों के अनुकूल हो, उसका आकार, उसकी तरास ( कटिंग ) उसका वजन, अंगूठी की धातु और विधी-विधान, सबकी सही जानकारी हो तभी कोई रत्न धारण करना चाहिये।
किसी योग्य ज्योतिषी से मिलकर अपनी जन्मकुण्डली के लग्न, नवान्श, और षोडश-वर्ग में ग्रहो कि स्तिथी की जाँच करवाये बगैर कोई भी रत्न धारण नहीं करना चाहिए। क्यों कि एक गलत रत्न आप को भयंकर परेसानी में भी डाल सकता है अथवा मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
वहीँ आयुर्वेद में रत्नों की भस्म द्वारा रोग निवारण के प्रयोग बताए गए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि रत्नों में ग्रहों की ऊर्जा होती है। जो जातक को स्वास्थ्य बल भी प्रदान करती है। आजकल देखने में आता है कि कोई भी किसी को कुछ भी रत्न बता देता है और जातक बिना कुछ विचार किये धारण भी कर लेता है, वह सोचता है की अगर यह रत्न ने मेरे मित्र को अच्छा फल, और प्रगति दे सकता है तो मुझे भी धारण करने पे वैसी ही ख़ुशी और प्रगति देगा तो यह तर्क गलत है मै कहना चाहूंगा कि जब कोई “रत्न” अपने ग्रहों के अनुकूल हो, उसका आकार, उसकी तरास ( कटिंग ) उसका वजन, अंगूठी की धातु और विधी-विधान, सबकी सही जानकारी हो तभी कोई रत्न धारण करना चाहिये।
किसी योग्य ज्योतिषी से मिलकर अपनी जन्मकुण्डली के लग्न, नवान्श, और षोडश-वर्ग में ग्रहो कि स्तिथी की जाँच करवाये बगैर कोई भी रत्न धारण नहीं करना चाहिए। क्यों कि एक गलत रत्न आप को भयंकर परेसानी में भी डाल सकता है अथवा मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
।।इति शुभम्।।
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