udyog vastu shastra उद्योग व्यापर में वास्तु दोष
मित्रों मैंने अपने वर्षों के वास्तु विजिट से प्राप्त अनुभव में पाया है कि .
मेरे अनेको क्लाइंट बड़े ही ऊर्जावान होते हैं, उनकी कार्य शैली व क्षमता अच्छे लेबल की होती है, वह अपने हर कार्य को बहोत ही ईमानदारी और लगन से करते हैं, अपने प्लान किये हुए कार्य को वह अच्छे ढंग से कर सके इसके लिए कहीं न कहीं कोई ऑफिस बनाते हैं, फैक्ट्री लगाते हैं, दुकान खोलते हैं, घर लेते हैं, शोरूम बनाते हैं जहां से वह अपने तरीके से अपने बिजनेस को सही दिशा दे सकें।
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उद्योग व्यापर में वास्तु दोष |
अब देखने मे यह आता है कि कुछ लोग तो सफलता पूर्वक अपना कार्य कर पाते हैं उनको उनकी मेहनत का उचित फल भी प्राप्त होता है। पर वहीं कुछ लोग अपने प्रयास में उतना सफल नहीं हो पाते जितना उन्हें होना चाहिए जब कि उनका तरीका और प्लान बिल्कुल सटीक होता है और उसके लिए वह अपनी पूरी ताकत लगा रहे होते हैं। फिर भी कार्य गति नहीं पकड़ता और कभी कभी तो उसे बंद करने की नौबत तक आ जाती है।
अब सवाल उठता है ऐसा क्यूँ होता है?
पर अगर सिर्फ कर्म से ही सब कुछ होता तो एक मजदूर हांथ में फावड़ा लेकर कड़ी धूप में पूरे दिन खुदाई करता है और संध्या समय 200/300 सौ रुपये ही कमा पाता है। और उसकी यह मेहनत हमारी मेहनत से कई कई गुना अधिक होती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि खुद के लिए ऊंची सफलता प्राप्त करनी हो तो उसके लिए और कई पहलुओं पे गौर करना होता है। जैसे किसी भी विजनेस को ऊची उड़ान नहीं उड़ने देने में वास्तुदोष की भी एक बड़ी भूमिका होती है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हम सभी जानते हैं कि इस संसार मे हर चीज पांच तत्वों से ही निर्मित होती है। हम जिस स्थान पे कार्य करते है वहां भी इन्हीं तत्वों का समावेश होता है साथ ही उस स्थान पे सूर्य की ऊर्जा, उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव की चुम्बकीय शक्ति, पृथ्वी के घूमने की दिशा आदि का प्रभाव महत्वपूर्ण होता है यह हमारे कार्य करने व जीवन जीने मे अपना विशेष महत्व रखते हैं। आइए इसे उदाहरण से समझने का प्रयास करें
हम सभी जानते हैं कि इस संसार मे हर चीज पांच तत्वों से ही निर्मित होती है। हम जिस स्थान पे कार्य करते है वहां भी इन्हीं तत्वों का समावेश होता है साथ ही उस स्थान पे सूर्य की ऊर्जा, उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव की चुम्बकीय शक्ति, पृथ्वी के घूमने की दिशा आदि का प्रभाव महत्वपूर्ण होता है यह हमारे कार्य करने व जीवन जीने मे अपना विशेष महत्व रखते हैं। आइए इसे उदाहरण से समझने का प्रयास करें
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office vastu |
जैसे फैक्ट्री में दक्षिण-पश्चिम नैऋत्य दिशा वास्तु शास्त्र के अनुसार पृथ्वी तत्व का गुण-धर्म लिए होती है यह दिशा चीजों को स्थायित्व प्रदान करने वाली होती है।
अब अगर अनजाने में आप अपने फैक्ट्री में तैयार समान इस दिशा में रखते हैं तो वह स्टेबल जोन में आ जाता है जिसकी वजह से वह माल मार्किट में नहीं जा पायेगा। हो सकता है किसी अंजान कारणों से उस तैयार माल का ऑर्डर ही कैंसिल हो जाये।
ठीक उसी तरह उत्तर/पूर्व ईशान्य दिशा जल तत्व की होती है अगर वहां अनजाने में भारी मशीनरी रख दी जाए तो वह मशीन अपना कार्य ठीक से न कर पाए उसमे ऊर्जा की खपत ज्यादा हो या वह ज्यादातर खराब रहे। या गलती से वहां जनरेटर ब्वॉयलर आदि रख दिया तो अग्नि और पानी का सदा बैर होता है जिससे वहां का वास्तु बिगड़ जाएगा।
अगर फैक्ट्री के मुख्य व्यक्ति का केबिन उत्तर-पश्चिम में बना दिया तो वायु दिशा प्रधान होने से वह अपने चेम्बर में टिककर बैठ नहीं पायेगा जिसके अनुपस्थिति में वहां का कार्य प्रभावित होगा। कहीं दक्षिण दिशा दूषित हुई तो तमाम लीगल दिक्कतें आने लगेगी इस तरह के कई सूत्र वास्तुशास्त्र ने दिए हैं।
कभी कभी जिस जमीन पे वह फैक्ट्री निर्मित है वहां की जमीन दोष युक्त है तब भी विजनेस ठीक से नहीं चल पाएगा, लाख कोशिशों के वावजूद भी कार्य का उचित परिणाम नहीं मिल पायेगा इसलिए घबराने या परेशान होने के बजाय उस जगह के वास्तु की जांच करवानी चाहिए और उसके लिए जो भी उपचार संभव हो करना चाहिए।
मैंने अपने वर्षों के अनुभव में छोटे बड़े कई उद्योगों का सफलता पूर्वक उपचार किया है जिससे बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।
।।इति शुभम्।।
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uday prakash sharma |
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