ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

aditya hridaya stotra । आदित्य हृदय स्तोत्र

aditya hridaya stotra । आदित्य हृदय स्तोत्र


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जब भी जीवन में आत्मविश्वाश की कमी हो, शत्रुओं का भय सताए, संघर्ष करने का बल न बचे, कार्य क्षेत्र में विरोधी अड़चन डालें, राज सत्ता की तरफ से अड़चन पैदा हो, मान सम्मान की हानि हो, शरिरिक व्याधि सताए, कोर्ट केस हो जाये, हर तरफ से लगातार हानि होने लगे तो ऐसे में बाल्मीकि रामायण में वर्णित आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ राम बाण का कार्य करता है, भगवान श्री राम जब खुद रावण के साथ युद्ध भूमि में थे और रावन के मायावी युद्ध से चिंतित थे तब भगवान श्री अगस्त्य मुनि में उन्हें यह स्तोत्र  दिया था और कहा था की हे रघुकुल शिरोमणि श्री राम आप इस स्तोत्र का नियमित पाठ कीजिये जिससे आप निर्भय होकर युद्ध  में मायावी रावण के सभी छल कपट का सहज ही नाश कर विजय श्री प्राप्त करेंगे।

मित्रों ज्योतिष शास्त्र में भगवान सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह कहा गया है, यह आरोग्य और तेज को देने वाले है  जिस जातक कि कुंडली में सूर्य बलवान होते हैं वह हजारों में एक होता है वह निति-निपुण होता है। उसका आत्मबल उच्च स्तर का होता है वह समाज को राह दिखने वाला नेता होता है, पर वहीँ अगर कुंडली में सूर्य अशुभ हों तो व्यक्ति दिन-हिन और निरुत्साही होता है। ऐसे में उस जातक को इस पवित्र पाठ को अवश्य करना चाहिए । यह स्तोत्र  अमोघ है इसकी महिमा अपरम्पार है इसके श्रवण अथवा पठन मात्र से सभी व्याधियां स्वतः समाप्त हो जाती हैं पर प्रिय पाठकों इस स्त्रोत्र के पाठ को करने के लिए कुछ नियम निर्धारित हैं जिनका अनुसरण न करने से इस का पूर्ण फल नहीं प्राप्त हो पाता। साथ ही इसका पाठ करने वाले व्यक्ति को मांस, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, झूठ बिलकुल नहीं बोलना चाहिए, अनीति से दूर रहना चाहिए, इस पाठ से उसी का कल्याण संभव जो धर्म के मार्ग पे चलते हैं।

आदित्य ह्रदय स्तोत्र पाठ के नियम 

जब भी इस दिव्य पाठ को करने का विचार बनायें तो सबसे पहले ध्यान रखें की इसकी सुरुआत किसी भी शुक्ल पक्ष के रविवार से सुरु कर के नित्य पाठ करना चाहिए अगर नित्य पाठ करना संभव न हो तो हर रविवार को करना चाहिए। सुबह नित्य क्रिया के पश्चात् सूर्य देवता को ताम्बे के लोटे में लाल पुष्प डालकर अर्ध्य दें फिर घर के मंदिर या किसी भी पवित्र स्थान पर पूर्व की तरफ मुह कर के लाल रंग के आसान पर बैठे व भगवान सूर्य देव का सात घोड़ों के रथ पर सवार तेजस्वी छवि का ध्यान करें व श्रद्धापूर्वक पंचोपचार (धुप, गंध/चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाँथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मन्त्र को पढ़ें।
( विनियोग का बहुत महत्त्व है। जैसे- किसी भी मन्त्र या स्तोत्र या छंद को जपने, पढने का उदेश्य क्या है, उसको खोजने वाले, रचना करने वाले ऋषि कौन है अदि.. हम विनयोग द्वारा उस मन्त्र आदि को अपने कल्याण के लिए उपयोग कर रहे हैं और उसके रचयिता का आभार कर रहे हैं )

आदित्य ह्रदय स्तोत्र 

विनियोग मन्त्र.
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
अपने हाँथ का जल धरती पर छोड़ दें और फिर निम्नलिखित पाठ करें।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ ।
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

इस पाठ में भगवान आदित्य के सभी नामों से उनकी स्तुति की गयी है और उनसे इस संसार में रहते हुए अपनी हर प्रकार की सिद्धि की कामना की गयी है। इस आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है।

।। इति शुभम्।।

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