anahata chakra । अनाहत चक्र एक परिचय
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heart chakra |
इस ह्रदय चक्र चक्र के देवता है भगवान ईश् व श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति) चक्र की देवी हैं काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है I इस चक्र का रंग हरा हल्का नीला चमकदार, किरमिजी है, इस चक्र का तत्व वायु है, और इसका बीज मंत्र यं हैं।
इस चक्र का नाम अना+हत शब्द से बना है हत का अर्थ होता है समाप्त और अना का अर्थ है नही, मतलब जो कभी समाप्त न हो इसे दुसरे शब्दों में कहें तो जिसे घायल नहीं किया जा सके जो अजेय हो, जो हमेशा खुला हो, यह चक्र व्यक्ति के ह्रदय में स्थित होता है। और इसका गुण है प्रेम और हम सभी जानते हैं कि जीवन में एक निश्छल प्रेम ही है जो कभी समाप्त नहीं होता जितना प्रेम बांटा जायेगा यह उतना ही बढ़ता है। यह व्यक्ति के जीवन में बिना शर्त प्यार करने की स्थिति को नियंत्रित करता है। क्यूँ कि प्यार मनुष्य के जीवन में एक मरहम का कार्य करता है सायद इसी लिए इस चक्र को चिकित्सा का केंद्र भी कहा गया है।
अनाहत चक्र का शरीर के अंग भाग पर प्रभाव
अनाहत चक्र में श्वेत रंग का कमल होता है जिसमे बारह पंखुरियाँ होती हैं जो संभवतः ह्रदय के सभी बारह गुणों की परिचायक हैं। इस स्थान पर बारह नाड़ियाँ मिलती हैं। अनाहद चक्र में बारह ध्वनियां निकलती हैं। यह प्राण वायु का स्थान है। तथा यहीं से वायु नासिक द्वारा अंदर व बाहर होती रहती है। ( वायु के पञ्च प्रकार कहे गए हैं व्यान, सामान, अपान, उदान और प्राण वायु ) प्राण वायु शरीर की मुख्य क्रिया का संपादन करती है जैसे प्राण वायु को सभी अंगों में पहुँचाना अन्न-जल को पचाना, उसका रस बनाकर सभी अंगों में प्रवाहित करना, वीर्य बनाना, पसीने व मूत्र के द्वारा पानी को बहार निकलना प्राणवायु का कार्य है। वहीं अपान वायु ( एसिडिटी ) जिसे हम पेट में गैस बनना कहते है जब यह मणिपुर चक्र के दूषित होने पर ऊपर उठकर ह्रदय चक्र को खराब करती है तब दिल में ब्लोकेज जैसी स्थिति का कारण बनती है I यह चक्र ह्रदय समेत नाक के ऊपरी भाग में मौजूद है तथा ऊपर की इंद्रियों का काम इसके अधीन है।अगर व्यक्ति की ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो वह एक सृजनशील व्यक्ति होता है और हर क्षण कुछ न कुछ नया करने की सोचता है, वह कहानीकार, चित्रकार, कवि, शायर, इंजिनियर आदि हो सकता हैं । साथ ही परोपकार, छमा, करुणा, निष्कपट भवना से युक्त होता है।
अनाहत चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां -
अनाहत चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न प्रकार कि बिमारियां होने की सम्भावना बढ़ जाती है जैसे- ह्रदय एवं श्वास रोग ( Asthma), क्षय रोग टी.बी, छाती में खून जमना, दिल का जोर से धडकना फिर रुक जाना, स्तन कैंसर, छाती में दर्द, उच्च रक्तचाप तथा निम्न रक्तचाप, एलर्जी, बुखार आना, रक्षाप्रणाली विकार आदि।
जब यह चक्र कम गति पर घूमता है तब व्याक्ति के अन्दर प्यार जैसी भवना कम हो जाती है और वह खुद से घृणा और खुद के लिए आलोचनात्मक हो जाता है, अपनी असफलता के लिए दूसरों पे दोष मढ़ता है, दुनियां की खूबसूरती उसे नजर नहीं आती वह सदा अनमना सा रहता है I ( शायद जब कोई लड़का या लड़की किसी से प्यार करते है तो उसे इजहार करने के लिए लाल गुलाब देते हैं लाल रंग जिवंतता का प्रतीक जो है ) ।
वहीँ जब यह चक्र तीव्र गति से घूमता है तब व्यक्ति भवनात्मक रूप से इर्ष्या, गुस्सा, ख़ुशी आदि में बेकाबू होने लगता है प्यार में शर्त रखने लगता है, पाने या हावी होने की कोशिस करता है जिसकी वजह से रिश्ता टूट भी जाता है पर उसे अपनी गलती समझ नहीं आती प्रायः ऐसे लोग गलत रिश्ते में भी रहते है ।
अनाहत चक्र जगाने ( संतुलित) की सरल विधि
इस चक्र को जगाने का सबसे सरल मार्ग है सबसे पहले किसी हरे रंग के आसन पर बैठें (अगर किसी पार्क या हरी घास पे बैठे तो उत्तम) और ह्रदय पर संयम करे तथा ह्रदय स्थान पे हरे रंग की आभा की कल्पना करें और यं मन्त्र का गुंजन के साथ उच्चारण करें ऐसा नियमपूर्वक नित्य करने से यह चक्र धीरे धीरे जागृत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जागृत होने लगता है और शुष्मना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है। अगर रोज नंगे पावं हरी घास पर चला जाये तो भी यह चक्र संतुलित होने लगता है।मैंने अपने अनुभव में पाया है की Malachite या Jade Stone आदि कि अगुठी, पेंडेंट, माला जो ह्रदय को स्पर्श करे, अथवा ब्रेसलेट अदि पहनने से यह चक्र संतुलित करने में मदत मिलती है। पन्ना भी लाभदायक रत्न हो सकता है पर इसे धारण करने से पहले अपने ज्योतिषी से सलाह ले लें।
अनाहत चक्र जब संतुलित होकर सही ढंग से कार्य करने लगता है तब व्यक्ति में लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। तथा प्रेम और संवेदना मन में जाग्रत होती हैं व मन की इच्छा पूर्ण होती है। ज्ञान स्वतः ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित,चारित्रिक, रूप से जिम्मेदार, एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैसी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
।। इति शुभम्।।
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