chandra mantra । चन्द्र ग्रह के मन्त्र एवं उपाय
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chandra mantra |
नोट- निम्नलिखित किसी भी मन्त्र द्वारा चन्द्रमा का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है, इनमे से एक अथवा कई उपाय एक साथ किए जा सकतें है यह अपनी श्रद्धा पे निर्भर करता है। यह सभी बारम्बार अजमाए हुए फलित उपाय है।
चंद्र ग्रह का पौराणिक मन्त्र
ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुट भूषणम्।।
चन्द्र ग्रह का गायत्री मन्त्र
ॐ अमृताड्गाय विदमहे कलारुपाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ।।चन्द्र ग्रह का वैदिक मन्त्र
ऊँ इमं देवा असपत्न सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय महतेजानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रममुष्यै
पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्मांकं ब्राह्मणानां राजा।।
चन्द्र ग्रह का बीज मंत्र
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः।।जप संख्या – 11000समय – सोमवार चन्द्र की होरा में
चन्द्र ग्रह का तांत्रिक मन्त्र .
ॐ सों सोमाय नमःचन्द्र ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ ऐं क्ली सोमाय नमःयह मंत्र बोलते हुए चंद्रमा का पूजन करें।
चन्द्र ग्रह का दान
चन्द्र देव दिन होता है सोमवार अतः इस दिन चावल, सफेद चन्दन, शंख, कपूर, घी, दही, चीनी, मिश्री, खीर, मोती, सफ़ेद वस्त्र और चाँदी या चांदी के बर्तन। अगर यह दान पूर्णिमा को किया जाये तो लाभ ज्यादा मिलता है। इन सभी वस्तुओं में जो भी अपनी समर्थ अनुसार उपलब्ध हो पाए श्रद्धा भाव से दान करना चाहिए। (विशेष- कर्ज और उधार लेकर कभी दान न दें)।अगर संभव हो तो सफ़ेद रंग की गाय किसी ब्राह्मण को दें तो बहोत लाभ है ब्राह्मण गाय का दूध पियेगा और आप को दुआएं देगा।
चन्द्र ग्रह का व्रत
प्रथम बार दाहिने हाँथ में जल लेकर चन्द्र देव से अपनी समस्याओं के निवारण की प्रार्थना कर के सोलह सोमवार का लगातार व्रत करने का संकल्प करना चाहिए और वह जल भूमि पर छोड़ देना चाहिए तत्पश्चात पूजन और व्रत करना चाहिए, उस दिन कन्याओं को खीर खिलाना चाहिए। (स्त्री अगर रजस्वला हो तो व्रत रह सकती है पर पूजन न करें। संकल्प सिर्फ प्रथम बार करना चाहिए सोलह सोमवार का व्रत पूर्ण होने पर व्रत का पारण करना चाहीए, किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन करना चाहिए व चन्द्र की वस्तुए दान करनी चाहिए।चन्द्र की शुभता हेतु पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।
कुंडली में चन्द्र के शुभ होकर कमजोर होने की स्थिति में
* अपने चारपाई के चारो पाए में चांदी की कील ठुकवानी चाहिए।* गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए।
* किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआ खीर खिलाना चाहिए।
* सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है, सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान महिला एवं वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए।
* चाँदी का कड़ा, चाँदी की चैन, या चाँदी की अंगूठी में सच्चा मोती पहनना चाहिए।
* शुभ चन्द्र को रात्रि समय समय कुछ समय निहारने से भी चन्द्रमा के शुभ फल में वृद्धि होती है।
चन्द्र ग्रह के कुंडली में अशुभ होकर कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर_
* व्यक्ति को प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए।* स्वेत वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए।
* सुगंध नहीं लगाना चाहिए और मोती अथवा मून स्टोन नहीं पहनना चाहिए।
* बहते हुए पानी में चाँदी के टुकड़े या सिक्के, सफ़ेद फूल, या दूध प्रवाहित करने से चंद्रमा की अशुभता दूर होती है।
* चाँदी के बर्तन में कच्ची लस्सी में थोड़ा जल व थोड़ा दूध मिलाकर शिवलिंग पे चढाने से चंद्रमा अपना शुभ फल देता है
सूर्य ग्रह के मन्त्र एवं उपाय
इनके अलवान चन्द्र ग्रह से संबंधित कैसी भी परेशानी हो तो निम्नलिखित स्त्रोत का नित्य पाठ करें अगर नित्य संभव न हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष के सोमवार से प्रारम्भ कर के हर सोमवार को नियम पूर्वक इसका पाठ करें, इस पाठ का बहोत ही महत्व है, इससे जीवन में चन्द्र देव से संबंधित उपरोक्त सभी फल प्राप्त होते हैं।
विधि- सर्व प्रथम स्नानआदि से निवृत होकर सफ़ेद आसन पे बैठकर चन्द्र देव का ध्यान करें व श्रद्धापूर्वक पंचोपचार (धुप, गंध/चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाँथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मन्त्र को पढ़ें।
विनियोग मन्त्र.
अस्य श्रीचन्द्राष्टाविंशतिनामस्तोत्रस्य गौतम ऋषिः, सोमो देवता, विराट छन्दः, चन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः
अपने हाँथ का जल धरती पर छोड़ दें और फिर निम्नलिखित पाठ करें।
श्रीचन्द्राष्टाविंशतिनामस्तोत्रम्
चन्द्रस्य शृणु नामानि शुभदानि महीपते।यानि श्रुत्वा नरो दुःखान्मुच्यते नात्र संशयः ॥1॥
सुधाकरो विधुः सोमो ग्लौरब्जः कुमुदप्रियः।
लोकप्रियः शुभ्रभानुः चन्द्रमा रोहिणीपतिः ॥2॥
शशी हिमकरो राजा द्विजराजो निशाकरः ।
आत्रेय इन्दुः शीतांशुरोषधीशः कलानिधिः ॥3॥
जैवातृको रमाभ्राता क्षीरोदार्णवसंभवः।
नक्षत्रनायकः शंभुशिरश्चूडामणिर्विभुः ॥4॥
तापहर्ता नभोदीपो नामान्येतानि यः पठेत्।
प्रत्यहं भक्तिसंयुक्तः तस्य पीडा विनश्यति ॥5॥
तद्दिने च पठेद्यस्तु लभेत् सर्वं समीहितम्।
ग्रहादीनां च सर्वेषां भवेत् चन्द्रबलं सदा ॥6॥
।।इति शुभम्।।
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