ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

kundali me santan yog I कुंडली में संतान योग

kundali me santan yog I कुंडली में संतान योग


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विवाह या दामपत्य सम्बन्ध की मुख्यतम उपलब्धि संतान मानी गई है। विवाह के अन्य प्रयोजनों की तुलना में संतान इसका मुख्यतम प्रयोजन है। इसलिए विवाह से पूर्व वर का चुनाव करते समय संतान योग का भी गहनता से विचार आवश्यक हो जाता है। संतान का न होना दाम्पत्य जीवन में ऐसा अभाव उत्पन्न कर देता है जिसकी सामान्तया पूर्ति नहीं की जा सकती। इससे अनेक प्रकार की कुंठाएं, असन्तोष, मानसिक पीड़ायें अच्छे-खासे जीवन को नीरस या क्लेशमय बना सकती हैं।

अगर वर की कुण्डली में संतान प्रतिबंधक योग हो तो विवाह करने से क्या लाभ। अतः सिर्फ अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं होता बल्कि इन प्रमुख योगों की भी कुण्डली में जाँच अवश्य करनी चाहिए। आइये देखते है कुण्डली में वह कौन से ग्रह योग होते हैं जिनसे शिघ्र संतान, निश्चित रूप से पुत्र संतान एवं संतान प्रतिबंधक योग होता है।

जन्मकुंडली में शिघ्र संतान योग


(1) पंचम स्थान में शुभ ग्रह हो या उसपर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शीघ्र संतान का योग होता है।

(2) पंचम स्थान अपने स्वामी से दृष्ट या युत हो तथा उसपर गुरु की दृष्टि हो तो निश्चित रूप से शिघ्र संतान होती है।

(3) पंचम स्थान पर उसके कारक ( गुरु ) की दृष्टि हो तथा चंद्र लग्नेश और उससे पंचम स्थान का स्वामी एक दूसरे की राशि में हों तो संतान का सुख शिघ्र मिलता है।

(4) चंद्रमा, मंगल एवं शुक्र तीनो द्वी-स्वभाव की राशि में हो तब भी शिघ्र संतान के योग होता है।

(5) पंचमेश बलवान् होकर लग्न, पंचम या सप्तम में हो तथा उसपर पाप ग्रहों का प्रभाव न हो तो शिघ्र ही संतान का सुख मिलता है।

(6) पंचम स्थान में मेष या वृष अथवा कर्क राशि में राहु या केतु हों तो शिघ्र संतान की प्राप्ति होती है।

जन्म कुंडली में निश्चित रूप से पुत्र होने के योग


(1) लग्नेश पंचम में हो तथा पंचमेश या गुरु बलवान् हो तो निश्चित रूप से पुत्र होता है।

(2) पंचम भाव, पंचमेश या गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट-युत हों तो निश्चित रूप से पुत्र संतान होती है।

(3) बलवान् वृहस्पति पंचम स्थान में हो तथा उसपर लग्नेश की दृष्टि हो तो निःसंदेह पुत्र होता है।

(4) पंचमेश या गुरु वैशेषिकांश में हों और पंचम स्थान पर नवमेश की दृष्टि हो तो भी पुत्र संतान होती है।

जन्मकुंडली में संतान में बाधा योग


(1) लग्न से, चंद्र से तथा गुरु से पंचम स्थान पाप ग्रह से युक्त हो और वहाँ कोई शुभ ग्रह न बैठा हो न ही शुभ ग्रह की दृष्टि हो।

(2) लग्न, चंद्र तथा गुरु से पंचम स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो।

(3) यदि पंचमेश पाप ग्रह होते हुए पंचम में हो तो संतान होती है परंतु शुभ ग्रह पंचमेश होकर पंचम में बैठ जाये और साथ में कोई पाप ग्रह हो तो वह पाप ग्रह संतान सुख में बाधक बनेगा।

(4) यदि पंचम भाव में वृष, सिंह, कन्या या वृश्चिक राशि हो और पंचम भाव में सूर्य, आठवें भाव में शनि तथा लग्न में मंगल स्थित हो तो संतान होने में दिक्कत होती है एवं विलंब होता है।

(5) लग्न में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों तथा गुरु से पांचवें स्थान पर भी पाप ग्रह हो तथा ग्यारवें भाव में चन्द्रमा हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।

(6) प्रथम, पंचम, अष्टम एवं द्वादस । इन चारो भावों में अशुभ ग्रह हो तो वंश वृद्धि में दिक्कत होती है।

(7) चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह, सातवें में शुक्र तथा दसवें में चन्द्रमा हो तो भी वंश वृद्धि के लिए बाधक है।

(8) पंचम भाव में चंद्रमा तथा लग्न, अष्टम तथा द्वादस भाव में पाप ग्रह हो तो भी वंश नहीं चलता।

(9) पंचम में गुरु, सातवें भाव में बुध- शुक्र तथा चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना संतान बाधक है।

(10) पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ राशि हो। शनि वहां बैठा हो या शनि की दृष्टि पांचवे भाव पर हो तो पुत्र संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

(11) षष्टेश, अष्टमेश या द्वादशेश पंचम भाव में हो या पंचमेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या पंचमेश नीच राशि में हो या अस्त हो तो संतान बाधायोग उत्पन्न होता है।

(12) पंचम में गुरु यदि धनु राशि का हो तो बड़ी परेशानी के बाद संतान की प्राप्ति होती है।

(13) पंचम भाव में गुरु कर्क या कुंभ राशि का हो और गुरु पर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तो प्रायः पुत्र का आभाव ही रहता है।

(14) तृतीयेश यदि 1-3-5-9 भाव में बिना किसी शुभ योग के हो तो संतान होने में रूकावट पैदा करता है।

(15) लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं गुरु सब के सब दुर्बल हों तो जातक संतानहीन होता है।

(16) पंचम भाव में पाप ग्रह, पंचमेश नीच राशि में बिना किसी शुभ दृष्टि के तो जातक संतानहीन होता है।

(17) चंद्रमा और गुरु दोनों लग्न में हो तथा मंगल और शनि दोनों की दृष्टि लग्न पर हो तो पुत्र संतान नहीं होता ।

(18) लग्नेश षष्ठ या अष्टम में हो और पंचमेश पाप ग्रहों के साथ हो तो मनुष्य संतानहीन होता है।


।।इति शुभम्।।

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