ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

kundli se vastu dosh nivaran । कुंडली से वास्तु दोष निवारण

kundli se vastu dosh nivaran । कुंडली से वास्तु दोष निवारण

kundli se vastu dosh nivaran, कुंडली से वास्तु दोष निवारण, kundli se vastu dosh in hindi
kundali se vastu dosh nivaran 

यह ऐक सर्व विदित तथ्य है कि वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। जिसमे निहित समस्त सिद्धांत ठोस वैज्ञानिक सूत्रों पर आधारित है। वास्तुशास्त्र इन सभी मुख्य सूत्र जैसे- पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति, उसका गुरुत्वाकर्षण एवं घूर्णन बल, उत्तरीय एवं दक्षिणीय ध्रुवों का प्रभाव, सूर्य ऊर्जा का प्रवाहमान स्रोत तथा पृथ्वी के 23 1/2 डिग्री के झुकाव से होने वाले जलवायु परिवर्तन आदि के प्रभाव के बिच संतुलित रूप से एक घर का निर्माण करने का कार्य करता है जिसमे रहकर मनुष्य एक सुरक्षित संवृद्ध जीवन जी सके।


दूसरी तरफ ज्योतिष शास्त्र भी एक ठोस विज्ञान है। इसके अंतर्गत सौर मंडल के विभिन्न ग्रहों के पृथ्वी और पृथ्वी वासीयों पर पड़ने वाले आकर्षण एवं विकर्षण का क्या प्रभाव है उसे समझया गया है। वास्तु विज्ञान तथा ज्योतिष विज्ञान दोनों एक दूसरे के पूरक प्रतीत होते हैं क्यों की दोनों ही में मानव मात्र के चहुँमुखी कल्याण का ही मार्गदर्शन है।

गहराई में प्रवेश करने पर एक बड़ा ही चमत्कारिक तथ्य सामने आता है, जिसे जान-समझ कर वास्तु संबंधी हर प्रकार के दोष को ज्योतिष उपायों के माध्यम से दूर किया जा सकता है। इस विधि को समझने हेतु पहले कुंडली  के सभी बारह भावों की, उनके स्वामियों की एवं उन भाव की दिशाओं की जानकारी होना अनिवार्य है। जो की निम्नानुसार है।

* प्रथम भाव- इसकी दिशा पूर्व है। इसके स्वामी सूर्य है।

* द्वतीय भाव- इसकी दिशा ईशान्य है। इसके स्वामी गुरु है। मगर यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ गुरु  पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य के प्रभाव से युक्त हैं।

* तृतीय भाव- इसकी भी दिशा ईशान्य है। इसके स्वामी भी गुरु है पर यह गुरु उतर दिशा के स्वामी बुध के प्रभाव के साथ है ।

* चतुर्थ भाव- इसकी दिशा उत्तर है। इसके स्वामी बुध हैं।

* पंचम भाव- इसकी दिशा वायव्य है। इसके स्वामी चंद्र हैं। पर यहाँ भी यह ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह चन्द्र उत्तर दिशा के स्वामी बुध के साथ हैं ।

* षष्ट भाव- इसकी दिशा भी वायव्य है। इसके स्वामी भी चंद्र है। पर यह चन्द्र पश्चिम दिशा के स्वामी शनि के साथ युक्त हैं । 

* सप्तम भाव- इसकी दिशा पश्चिम है। इसके स्वामी शनि है।

* अष्टम भाव- इसकी दिशा नैऋत्य है। इसके स्वामी राहु है। पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहाँ राहु शनि के प्रभाव से युक्त हैं। 

* नवम भाव- इसकी दिशा भी नैऋत्य है। इसके स्वामी भी राहु हैं। पर यह राहु दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल के प्रभाव से युक्त हैं ।

* दशम भाव- इसकी दिशा दक्षिण है। इसके स्वामी मंगल हैं।

* एकादश भाव- इसकी दिशा आग्नेय है। इसके स्वामी शुक्र हैं। पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ शुक्र दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल के प्रभाव से युक्त है ।

* द्वादश भाव- इसकी दिशा भी आग्नेय है। इसके स्वामी भी शुक्र हैं। पर यहाँ भी हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह शुक्र पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य के प्रभाव से युक्त हैं ।

विभिन्न भावों की दिशा एवं स्वामियों को समझने के पश्चात् आइये अब समझे की वास्तु दोषो में ज्योतिष विज्ञान क्या मदत कर सकता है? जब भी कभी हमें जानना हो कि किसी भवन में क्या वास्तुदोष है? और उसका निवारण कैसे हो सकेगा तब उस भवन के मुहूर्तकाल की कुंडली बनाईये। अगर भवन का मुहूर्त काल ज्ञात न हो तो भवन स्वामी की ही कुंडली ले लें ।

अब उस कुंडली में मात्र यह देखें की उसमे कौन-कौन से भाव दूषित हैं, अर्थात वे पाप ग्रहों से युक्त है अथवा उनके स्वामी नीच राशि में है या फिर ऋणात्मक युतियां बना रहे हैं। एक ज्योतिषीय के लिए यह कार्य कठिन नहीं है। बस कुंडली  में जो भाव बिगड़े होंगे, वही क्षेत्र उस भवन का दोष युक्त होगा।

आइये उदाहरण स्वरूप कुंडली के प्रथम और द्वितीय भाव को  देखते हैं कि किस तरह से मकान में वास्तु दोष और उपाय को जानते है ?

सूर्य ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं उपाय

* अगर कुंडली का प्रथम भाव दोषपूर्ण है तो समझो उस मकान की पूर्व दिशा दूषित होगी । परिणाम स्वरूप उस मकान में मानसिक अशांति बनी रहेगी, उनमे अहम् का वास होगा, उनमे झूठ बोलने की आदत होगी, आत्मविश्वास कमजोर होगा, उन्हें बेवजह कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे, मान-प्रतिष्ठा पे आंच आ सकती है, गृह स्वामी पर कर्ज हो सकता है, रोग प्रतिरोधक छमता कमजोर रहेगी, घर में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं हो पायेगा, पितृ दोष का योग होगा, घर में मांगलिक कार्यों में बाधा जैसी समस्याएं बनी रहेंगी।
_ अब इस घर में सूर्य से संबंधित उपचार की आवश्यकता होगी,  जैसे प्राण प्रतिष्ठित ताम्बे धातु पे बने सूर्य यंत्र की स्थापना, सूर्य मन्त्रों का जाप, सूर्य पूजा आराधना आदि तथा इस दिशा को साफ सुथरा रखना एक अच्छा विकल्प होगा। अगर कुंडली के प्रथम भाव में किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव है तो उसका दान भी किया जा सकता है ।
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* अगर कुंडली का द्वितीय भाव दोषपूर्ण है तो - तो समझो उस मकान की ईशान दिशा दूषित होगी । परिणाम स्वरूप  परिवार में दूषित सोच, बिगड़ा स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति का डावाडोल होना, पुरुष संतान में कमी, संतान की शिक्षा में बाधा, अत्यधिक संघर्ष, अपयश, दैवीय कृपा का आभाव, घर का पैसा फंसता है, वाणी कटु हो जाती है इससे कौटुम्बिक कलह उत्पन्न होती है, वैवाहिक जीवन खराब हो सकता है।
_ अब ऐसे में यहाँ गुरु और सूर्य के उपचार करने होंगे जैसे- उपरोक्त चित्र के अनुसार  एक ही फ्रेम में  गुरु यंत्र मध्य में स्वस्तिक यंत्र फिर सूर्य यंत्र को फ्रेम करवाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर के घर में स्थापीत करना चाहिए तथा सूर्य व गुरु मन्त्र का जप और पूजा करनी चाहिए, वर्ष में एक बार घर में रुद्राभिषेक करवाना भी  लाभप्रद होगा। अगर इस भाव में किशी अशुभ ग्रह का प्रभाव है तो उसका दान करना लाभकारी होगा।.

गुरु ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं उपाय 

इसी तरह कुंडली के सभी भावों का बारीकी से अध्यन करने पे किसी भी ज्योतिषी को यह बहुत सरलता से ज्ञात हो सकेगा कि कुंडली का कौन सा भाव दूषित है और उस भाव से संबंधित दिशा कौन सी  है तथा वहां कौन कौन से दोष आ सकते  है तथा उन दोषों को दूर करने के लिए क्या क्या उपाय करने है, वहां किस मन्त्र का जप और दान करना लाभकारी होगा ।

पं. उदय प्रकाश शर्मा

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