ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

muladhara chakra I मूलाधार चक्र एक परिचय

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मूलाधार चक्र के लिए हमारे योग शास्त्रों में बहुत कुछ कहा गया है। 

यह शरीर के चक्र क्रम में प्रथम चक्र है।

मूलाधार चक्र के देवता भगवान श्री गणेश जी हैं जो ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं और चक्र की देवी हैं देवी डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं। जब हमारा यह चक्र संतुलित होता है तो भगवान श्री गणेश की हमपर कृपा होती है और हम बुद्धि का सही उपयोग कर के सन्मार्ग पे चलने वाले होते हैं और देवी डाकिनी स्वर्ण मुकुट धारण करके हमारी सहायता करती हैं, वहीँ जब यह चक्र असंतुलित होता है तो हमपर भगवान श्री गणेश की वैसी कृपा नहीं होती और यह देवी डाकिनी अपने केस खोल लेती हैं और भयानक हो जाती हैं व हमरी शुद्ध बुद्धि को दुर्बुद्द्धि में परिवर्तित कर देती हैं जिसके परिणाम स्वरूप हम जीवन को अशन, शयन और भोग में ही लिप्त कर लेते हैं I इस चक्र का तत्व है पृथ्वी अर्थात हमारे शरीर व जीवन की नीव ( बुनियाद ) इसी चक्र पे टिकी होती है ।इस चक्र का रंग है गहरा लाल और इसका बीज मंत्र है ( लं )

मूलाधार चक्र का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है मूल+आधार मूल अर्थात जड़ और आधार का अर्थ है नीवं यह वह चक्र है जहाँ पर शरीर का संचालन करने वाली कुण्डलिनी-शक्ति से मिला हुआ मूल अर्थात जड़ स्थित है। यह चक्र शरीर में गुदा और लिंग मूल के मध्य में स्थित है जो अन्य स्थानों से कुछ उभरा सा महसूस होता है। शरीर के अन्तर्गत ‘मूल’, शिव-लिंग आकृति का एक मांस पिण्ड होता है, जिसमें शरीर की संचालित करने वाली शक्ति रूप कुण्डलिनी-शक्ति साढ़े तीन फेरे में लिपटी हुई शयन-मुद्रा में रहती है। चूँकि यह कुण्डलिनी जो शरीर की संचालिका शक्ति है और वही इस मूल रूपी मांस पिण्ड में साढ़े तीन फेरे में लिपटी रहती है सायद इसी कारण से भी इस मांस-पिण्ड को मूल और जहाँ यह आधारित है, वह मूलाधार-चक्र कहते हैं I

मूलाधार-चक्र अग्नि वर्ण की त्रिभुजाकार एक आकृति होती है जिसके मध्य कुण्डलिनी सहित मूल स्थित रहता है। इस त्रिभुज के तीनों उत्तंग कोनों पर ईडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडी आकर मिलती है। इसके अन्दर चार अक्षरों से युक्त अग्नि वर्ण की चार कमल पंखुणियाँ स्थित हैं। ये पंखुणियाँ – स, ष, श, व अक्षरों से युक्त हैं । ऊपर मैंने लिखा कि यहाँ के अभीष्ट देवता के रूप में भगवान श्री गणेश जी नियत किए गए हैं। जो साधक साधना के माध्यम से कुण्डलिनी जागृत कर लेता है अथवा जिस साधक की स्वास-प्रस्वास रूप साधना से जागृत हो जाती है और जागृत अवस्था में उर्ध्वगति में जब तक मूलाधार में रहती है, तब तक वह साधक गणेश जी की शक्ति से युक्त बहोत बुद्धिमान हो जाता है। वह हर स्थिति को समझने के लायक हो जाता है और अपने जीवन को उर्ध्व गति की तरफ ले जा पाता है।
जीवन का अनुभव कहता है कि हर शुभ लक्षण हमारे भीतर पहले ही से मौजूद होते हैं आवश्यकता होती है उन्हें जागने कि।

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मूलाधार चक्र के दूषित होने से होने वाली बीमारियां

इस चक्र के दूषित होने पर प्रायः रीढ़ की हड्डी की बीमारियां, जोड़ों का दर्द, रक्त विकार, शरीर विकाश की समस्या, कैंसर, कब्ज, गैस, सिर दर्द, गुदा सम्बंधित रोग, यौन रोग, संतान प्राप्ति में समस्यांए एवं मानसिक कमजोरी जैसी भावनात्मक बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है।

मूलाधार चक्र जिसका भी असंतुलित होता है वह व्यक्ति जीवन में कभी भी स्थायित्व नहीं प्राप्त कर सकता पृथ्वी तत्व का बिगड़ना अर्थात जीवन में संघर्ष का बढ़ना, बिल्डिंग कितनी मजबूत होगी यह उसकी नीव से ही निर्धारित होता है वह जितनी ठोस धरातल पे खड़ी होगी उतनी ही मजबूत होगी, ऐसा व्यक्ति आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह से कमजोर होगा उसके लिए अपने जीवन में संबंधों को संभलना भी मुश्किल होता है, वह नकारात्मक शक्तियों की चपेट में जल्दी आ जाता है, नजर दोष, टोने टोटके से भी वह जल्दी से प्रभावित होता  है तथा  उसके भयभीत व संक्रमित होने का खतरा भी ज्यादा होता है, वह खुद को हमेसा असुरक्षित महसूस करता है ।

इस चक्र का मध्यम या उससे कम गती पे कार्य करना अच्छा माना जाता है I योगशास्त्र के अनुसार मूल बंद का आसन विशेष लाभदायी होता है।  इसमें विशेष आसन में गुदा द्वार को संकुचित करना होता है I अभिप्राय है की व्यक्ति का मूलाधार जितना बंद होगा वह नकारत्मक उर्जा को कम अवशोषित करेगा जिससे उसका स्वास्थ्य व मन उत्तम होगा I
वहीँ इस चक्र के उच्च गति पे कार्य करने से व्यक्ति ज्यादा नकारात्मक उर्जा ग्रहण करेगा और अ-स्थिर रहेगा ।

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चक्र जगाने की विधि 

मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए कुछ नियमो का पालन करना होगा जैसे अत्यधिक सम्भोग, अत्यधिक भौतिक लिप्सा व नशे से खुद को बचाते हुए पहले प्राणायाम कर के मूलाधार चक्र पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा व चक्र के स्थान पर गहरे लाल रंग की आभा की कल्पना करते हुए नित्य नियम पूर्वक कुछ समय एक लाल रंग के आसन पर बैठकर लं मंत्र का उच्चारण करना होगा । नित्य की समय सीमा एक जैसी होनी चाहिए, जिससे धीरे धीरे यह चक्र जागृत ( संतुलित ) होने लगेगा।
मेरे अनुभव में मैंने यह देखा है की Red Jasper स्टोन की अगुठी, पेंडेंट, अथवा ब्रेसलेट अदि पहनने से यह चक्र सतुलित करने में मदत मिलती है । नंगे पावं जमीन पर नित्य चलने से भी मूलाधार चक्र संतुलित होता है ।

मूलाधार चक्र का प्रभाव  

इस चक्र के जागृत होनेपर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरुरी है। इससे आत्मिक ज्ञान प्राप्त होता है और व्यक्ति जिंदगी में बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी लेने की क्षमता से युक्त जाता है। हौसला मजबूत होता है शारीरिक ऊर्जा बढ़ जाती है I बुद्धि शुद्ध हो जाती है I साथ हि व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने लगती है।

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।।इति शुभम।।

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