navagraha mantra I नवग्रह मंत्र एवं उपाय
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नवग्रह मन्त्र एवं उपाय |
हमारे ऐसा सोचने में उन अल्प ज्ञानी ज्योतिषियों का भी रोल होता है जो हमारी जन्मकुंडली को देखकर कहते है कि आप को तो शनि ग्रह परेसान कर रहा है, राहु आप की जिंदगी बर्बाद करने पे तुला हुआ है, केतु ग्रह का आप की असफलता में बहुत बड़ा रोल है अदि... आदि उनका येसा कहना सिर्फ इस लिए होता है कि वो हमें भयभीत कर के उपाय के नाम पर हमसे मोटी दक्षिणा वसूल सकें। वहीँ उनकी इस तरह की बातें सुन-सुन कर हम कहीं न कहीं मन ही मन में ग्रहों को अपना दुश्मन मानने लगते हैं, उन्हें बुरा भला कहते हैं, और उनसे भयभीत होते रहते हैं।
इसी के ऊपर एक प्रसिद्ध गीत भी है.
इतनी शक्ति हमें देना दाता..... मन का विश्वास कमजोर हो ना........।
अब क्यूँ की संसार में हर एक चीज का एक नियम निर्धारित है तो हमें उसे उसी रूप में जानना चाहिए है और उसी क्रम बद्धता से उसे करना चाहिए। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे कल्याण के लिए अपने वर्षों के कठिन तपोबल से अर्जित ढेरों मन्त्र, यंत्र, स्त्रोत, स्तुति, कवच, पाठ अदि हमें प्रदान किये है। जिनके जप-पूजन से इनको प्रसन्न कर के उनसे अपने लिए सुख-सौभाग्य, आरोग्य, प्रसिद्धि, कीर्ति, यश कि प्राप्ति के साथ-साथ मोक्ष और मुक्ति की कामना भी पूर्ण कर सकते हैं।पर हाँ यहाँ विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन उपायों के साथ-साथ हमें अपने कर्म भी पवित्र रखने होने तभी हम इन पूजा-पाठ-व्रत-मन्त्र अदि के सम्पूर्ण शुभ फल पाने के हक़दार होगे। एक कहावत है न कि जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे। सदा हमारे शुभ व पवित्र कर्म ही हमारे सुंदर भाग्य का निर्माण करते है। वहीँ हमारे द्वारा किये अप्रिय कर्म ही कहीं न कहीं दुर्भाग्य को हमारे शरीर, हमारे जीवन और हमारे घर में प्रवेश करवाते हैं।
तो आइये जानते हैं सूर्यादि नवग्रहों का वह कौन सा पूजा मन्त्र है जिनका हमें अपनी आवश्यकता अनुशार नित्य जप करना चाहिए? एवं वह उपाय जिनसे इनकी शुभता प्राप्त हो सके?
सूर्य ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ ह्रीं सूर्याय नमः
यह मंत्र बोलते हुए सूर्य की पूजा करेंऔर अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें ।
सूर्य की शुभता हेतु सूर्योदय के समय तांबे के लोटे से अर्घ दें। पिता व बड़ों का सम्मान करें, आलस्य न करें, नीतिवान बने
चन्द्र ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ ऐं क्ली सोमाय नमः
यह मंत्र बोलते हुए चंद्रमा का पूजन करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जितना भी बन पड़े उतना जप करें।
चंद्रमा की शुभता हेतु किसी भी शिव मंदिर में शिवलिंग पर नित्य दूध चढ़ाएं।
मंगल ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ भोम भोमाय नमः
यह मंत्र बोलते हुए मंगल प्रतिमा अथवा यंत्र का पूजन करेंऔर अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
मंगल की शुभता हेतु किसी भी हनुमान मंदिर में नित्य दर्शन करें गुड से बनी मीठी चपाती किसी युवा को दान करें ।
बुध ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ ऐं स्त्रीं श्रीं बुधाय नमः
यह मंत्र बोलते हुए बुध प्रतिमा अथवा बुध यंत्र का पूजन करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
बुध की शुभ कृपा प्राप्त करने हेतु बहन बेटियों का सम्मान करना चाहिए
और किसी भी दुर्गा माता के मंदिर में निय दर्शन और पूजन करना चाहिए।
वृहस्पति ग्रह का पूजा मंत्र
ॐ बृहम बृहस्पतये नमः
यह मंत्र बोलते हुए गुरु प्रतिमा अथवा गुरु यंत्र का पूजन करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
गुरु की शुभता प्राप्ति हेतु नित्य माथे पर केशर का तिलक करें, गुरु व् ब्राह्मणों का सम्मान करें, नित्य लक्ष्मी नारायण के मंदिर में दर्शन करें।
शुक्र ग्रह का पूजा मंत्र
ऊँ ह्रीं श्री शुक्राय नमः
यह मंत्र बोलते हुए शुक्र यंत्र का पूजन करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
शुक्र की कृपा पाने हेतु अपनी स्त्री से सम्बन्ध मधुर रखें, किसी भी स्त्रीजाती का सम्मान करें, माता लक्ष्मी का पूजन करें।
शनि ग्रह पूजा मंत्र
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः
यह मंत्र बोलते हुए शनि प्रतिमा या यंत्र का पूजन करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
शनि देव कृपा प्राप्ति हेतु, जीवन में न्याय प्रिय बने, असहाय लोगों की मदत करें, आलस्य का त्याग करें।
राहु ग्रह पूजा मंत्र
ऊँ ऐं ह्रीं राहवे नमः
यह मन्त्र बोलते हुए राहु प्रतिमा अथवा राहु यंत्र की पूजा करें और अपनी समर्थ अनुसार नित्य 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
राहु की कृपा हेतु नित्य भैरो देव के मंदिर जाएँ उनको प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें, मांस, मदिरा व तम्बाकू का सेवन न करें, हांथी दन्त की अंगूठी बनवाकर माध्यमा उंगली में धारण करें।
केतु ग्रह पूजा मन्त्र
ॐ कें केतवे नमः
यह मन्त्र बोलते हुए ग्रह देव केतु की प्रतिमा या केतु यंत्र की पूजा करनी चाहिए एवं नित्य अपनी समर्थ अनुसार 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला जप करें।
केतु की शुभता प्राप्ति हेतु किसी गणेश मंदिर में नित्य दर्शन हेतु जाना चाहिए और भगवान गणेश को लड्डू चढाकर उनका पूजन कर उनका आशीर्वाद प्रदान करना चाहिए ।
नवग्रह की समुचित कृपा हेतु भगवान महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित नवग्रह स्त्रोत भी इसी के आधार स्वरुप एक महत्वपूर्ण मंत्र जाप है जिसके द्वारा समस्त ग्रहों की शांति एवं उनकी कृपा प्राप्ति संभव है।
नवग्रह स्त्रोत
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम्।
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् ।।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ।।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् ।।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।
देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् ।
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति ।।
नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।।
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः।
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः।।
।। इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ।।
।।इति शुभम्।।
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नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ।।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् ।।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।
देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
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नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् ।
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति ।।
नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।।
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः।
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः।।
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