ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

sahasrara chakra । सहस्त्रार चक्र एक परिचय

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सहस्त्रार चक्र के लिए हमारे योग शास्त्रों में बहुत कुछ कहा गया है। यह शरीर के चक्र क्रम में सातवाँ चक्र है।

सहस्त्रार चक्र को शीर्ष, मुकुट, केंद्र चक्र भी कहते हैं। इसके देवता भगवान शंकर कहे गए हैं। कैलाश पर्वत, शेषनाग, छीरसागर जैसे पवित्र व दिव्य संबोधन इसी चक्र के लिए प्रयोग किये जाते हैं। इस चक्र का तत्व सर्व तत्व ( आत्म तत्व ) आकाश है। इसका रंग जामुनी है। और इसका मन्त्र है।

मतान्तर से कुछ विद्वान इसे चक्र मानते ही नहीं उनका कहना है की इस चक्र पर इडा और पिंगला नाड़ियों का कोई प्रभाव नहीं है, यह दोनों नाड़ियां मूलाधार चक्र से सुरु होकर क्रमशः दायें और बाएं भाग से होते हुए आज्ञा चक्र पर मिल जाती हैं और यह जहाँ जहाँ भी एक दुसरे से मिलती हैं वहां वहां एक चक्र अवस्थित है। उनके अनुसार यह चक्र एक पूर्ण खिले हुए कमल की तरह है।

आज के युग के नई विचारधारा के उर्जावान वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए निरंतर अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार, आश्चर्य जनक शक्तियों का भंडार है जिससे सम्पूर्ण पृथ्वी इस केंद्र से आवश्यकता के अनुरूप शक्ति प्राप्त करती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मुलाधार तथा सहस्त्रार चक्रों मे भी आश्चर्यजनक उर्जा शक्तियों का भंडार है। जिसके उचित प्रयोग से वह खुद का व संसार का कल्याण कर सकता है। यह स्वयं शिद्ध है कि अन्तरिक्ष में सदा ब्रह्म चेतना का सतत प्रवाह होता रहता है जिसको उत्तरीय सहस्त्रार चक्र ही ग्राह्य कर के दक्षिणी मूलाधार तक पहुंचाता है। यह वो चक्र है जो व्यक्ति की बुद्धि और परमात्मा से अध्यात्मिक मिलाप का प्रतिनिधित्व करता है।

सहस्त्रार चक्र का शरीर के अंग भाग पर प्रभाव 

यह सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे ब्रह्म रन्ध्र (ईश्वर का दरबार) या लक्ष किरणों का केंद्र भी कहा जाता है इसमें कुल 972 पंखुड़ियां दिखाई देती है। इसमें नीचे 960 छोटी-छोटी पंखुड़ियाँ और उनके ऊपर मध्य में 12 सुनहरी पंखुड़ियाँ सुशोभित रहती है। इसे हजार पंखुड़ियों वाला कमल कहते हैं।इसका चिन्ह खुला हुआ कमल का फूल है जो असीम आनन्द का केंद्र होता है। इस चक्र में इंद्रधनुष के सारे रंग दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रंग बैगनी होता है। इस चक्र में ‘अ’ से ‘क्ष’ तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती है। पिट्यूटरी और पीनियल ग्रंथि का आंशिक भाग इसमें संबंधित है। यह मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा और दाईं आंख को नियंत्रित करता है। यह आत्मज्ञान, आत्म दर्शन, एकीकरण, स्वर्गीय अनुभूति के विकास का मनोवैज्ञानिक केंद्र है।

सहस्रार को जागृत कर लेने वाला व्यक्ति संपूर्ण भौतिक विज्ञान की सिद्धियां हस्तगत कर लेता है, उसे आत्म अनुभति, और ईश्वर की अनुभूति होने लगती है, ब्रह्मांड की चेतना से उसकी आत्मा का जुडाव हो जाता है। यही वह शक्ति केंद्र है जहां से मस्तिष्क शरीर का नियंत्रण करता है। और विश्व में जो कुछ भी मानव-हित के लिए विलक्षण विज्ञान दिखाई देता है उस का संपादन करता है। इसे ही दिव्य दृष्टि का स्थान कहते है। मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक सभी चक्रों के जागरण की कुंजी सहस्रार चक्र के पास ही है। अगर यह चक्र जागृत हो गया तो सभी अन्य चक्र खुलते चले जाते हैं।

सहस्त्रार चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां 

इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना होती है। जैसे सिरदर्द, मानसिक रोग, नाडीशूल, मिर्गी, मस्तिष्क रोग, एल्झाइमर, त्वचा में चकत्ते आदि रोग व वृद्धावस्था, उदासी, मनोभ्रंश जैसी भवनात्मक स्थिति उत्पन्न होने की प्रबल सम्भवना होती है।

एक यही चक्र ऐसा है जो अगर अगर ज्यादा खुला हो अर्थात उच्च गती पर कार्य करता हो तो व्यक्ति के शरीर के भीतर अत्यधिक शुभ ब्रह्मांडीय उर्जा का संचार करता है। जिससे व्यक्ति के अन्य असंतुलित चक्रों को यह अन्तरिक्ष की शुभ उर्जा उपचारात्मक रूप से कार्य कर के ठीक करने में सहायक होती है। हाँ यह भी सत्य है की ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिकता के लिए ज्यादा आसक्त हो जाते हैं और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं। ये लोग सर्वोच्च शक्ति से मार्गदर्शन का अनुभव करते हैं। इनके अंतर्ज्ञान (Intuition) की शक्ति बहोत बढ़ जाती है, जिस भी ज्योतिषी (भविष्यवक्ता) का यह चक्र उच्च गती पर कार्य करता है उसका भविष्य कथन अक्षरशः सत्य होता है।

इस चक्र का कम गती पे कार्य करना व्यक्ति के लिए अशांति का कारण बनता है , उसे जीवन में अपनी किसी भी समस्या से बाहर निकलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वह ईश्वरीय शक्ति का बल नहीं प्राप्त कर पाता है I ध्यान नहीं लगता , उसे सदा उदासी घेरे रहती है।

विशेष- मित्रों क्यूँ की मै एक वास्तु शास्त्री भी हूँ तो आप को इतना बताता चलूँ की हमारे घर की ईशान दिशा अर्थात north east का इस चक्र से बहुत गहरा सम्बन्ध होता है। घर का यह स्थान भगवान ईश का है यहाँ गुरु वृहस्पति का भी प्रभाव होता है। प्रायः हर वास्तु शास्त्री घर में इसी स्थान पे मंदिर बनाने की सलाह देता है तथा वह यह भी सलाह देता है की इस स्थान को खुला और साफ-सुथरा रखना चाहिये। इससे घर में शुभ उर्जा अत्यधिक आती है पूजा अथवा ध्यान करते हुए ध्यान अच्छे से लगता है। अगर गलती से भी घर में यह दिशा बंद हो या दूषित हो यहाँ शौचालय हो तो उस घर में रहने वालों को कोई ईश्वरीय कृपा नहीं मिल पाती और लगभग सभी सदस्यों का सहस्त्रार चक्र दूषित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
अगर आप वास्तु पुरुष की तस्वीर देखेंगे तो पाएंगे की इसी स्थान पे वास्तु देवता का मस्तक आता है।

सहस्त्रार चक्र जागने की सरल विधि 

सर्व प्रथम मन को शांत रखते हुए किसी खुले हुए स्थान जैसे खुली छत या किसी पिरामिड आकार या मंदिर के गुम्बद के निचे शुद्ध होकर शुद्ध आसन पे सुखासन में बैठ जाये और शीर्ष अर्थात शिर के उपरी भाग पे अतरिक्ष से आती हुई की स्वेत नीली रौशनी की कल्पना करते हुए अपनी आती और जाती हुई श्वास पे ध्यान केन्द्रित कर के मन्त्र का नित्य उच्चारण करने से यह चक्र जागृत होने लगता है।
मैंने अपने अनुभव में पाया है की Amethyst Stone कि अगुठी, पेंडेंट, माला अथवा ब्रेसलेट अदि पहनने से यह चक्र संतुलित करने में मदत मिलती है। अगर आप की कुंडली में शनि योगकारक और शुभ हों तो आप नीलम भी धारण कर सकते हैं। पर इसके लिए अपने ज्योतिषी से सलाह लेना अवश्यक है ।

सहस्त्रार चक्र का जीवन में शुभ प्रभाव 

इसका प्रभाव यह वास्तव में चक्र नहीं है बल्कि साक्षात तथा संपूर्ण परमात्मा और आत्मा है। जो व्यक्ति सहस्रार चक्र का जागरण करने में सफल हो जाते हैं, वे जीवन मृत्यु पर नियंत्रण कर लेते हैं सभी लोगों में अंतिम दो चक्र सोई हुई अवस्था में रहते हैं। अतः इस चक्र का जागरण सभी के बस में नहीं होता है। इसके लिए कठिन साधना व किसी योग्य गुरु के सानिध्य में लंबे समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है।
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।। इति शुभम्।।

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