ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

shani ka barah bhav me fal । शनि का बारह भाव में फल

shani ka barah bhav me fal । शनि का बारह में फल

shani ka barah bhav me fal, शनि का बारह भाव में फल, shani ka fal in hindi
12 bhav me shni ka fal 
जन्म पत्रिका में नौ ग्रहों में से शनि का अपना एक विशिष्ट स्थान है। बुरे फलों को देने के कारण शनि को सर्वाधिक रूप से पापी ग्रह माना गया है। न्यायाधीश, दण्डाधिकारी कहते हुए इन्हें मृत्यु का देवता भी कहा गया है। यह  यमराज के भाई है। ज्योतिष में अधिकतर  शनि को अशुभ ग्रह मानते हुए उसके अशुभ फलों का वर्णन अधिक रूप से प्राप्त होता है। जब की यह सही नहीं है मेरे अनुभव में शनि न्यायप्रिय है वह सिर्फ हमारे शुभाशुभ कर्मो के अनुरूप फल देने वाले है। वह सिर्फ अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं, व्यक्तिगत रूप से उनका हमसे कोई वैर नहीं है, निर्मल सोच और कर्म रखने वालों पे उनकी विशेष कृपा रहती है । 

बारह लग्नों में बारहों स्थानों पर शनि के भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैम। जहाँ वृषभ एवं तुला लग्न में शनि योगकारक ग्रह होते है, वहीँ कर्क एवं सिंह लग्न में अकारक ग्रह, तथा मकर व कुम्भ लग्न में शनि कारक ग्रह होते है , तो धनु और मीन लग्न में शनि के सामान्य फल प्राप्त होते हैं। आईये जानते है कुंडली के सभी बारह भावों में फल
नोट- यह शनि के भाव अनुसार सामान्य फल हैं, कुंडली की अन्याअन्य स्थिति में निम्नलिखित फलों में वृद्धि, न्यूनता अथवा कुछ परिवर्तन संभव है ।

शनि कुंडली के प्रथम भाव में 

प्रथम भाव अर्थात लग्न में  शनि मध्यम फलकारी होता है। यहाँ उसके अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के फल देखने को मिलते हैं। उच्च राशि अथवा स्वराशि स्थिति में शनि लग्न में होने पर शुभ फलकारी होता है, जातक को अपनी रूचि के अनुसार सफलता प्राप्त होती है। सरकारी नौकरी का योग होता है, व्यक्ति युक्तिपूर्वक कार्य करने वाला, धैर्य धारण करने वाला, एकांत वासी, तथा सरपंच होता है। ऐसे जातक का इंट्यूशन बहोत अच्छा होता है, यह राजा जैसा जीवन पाते हैं। वही नीच एवं शत्रु राशि में होने पर अशुभ फलकारी होता है, आलस्य और रोग देता है।
ऐसे जातक को शनि का शुभ फल प्राप्त करने के लिए मांस मदिरा सेवन नहीं करना चाहिए, आलस्य का त्याग कर कर्म में तत्पर रहना चाहिए, तथा शनिवार के दिन तेल का सेवन नहीं करना चाहिए यह चाहे बदन में लगाने से हो या खाने से।

शनि कुंडली के दुसरे भाव में

दुसरे भाव में  स्थित शनि के कारण जातक का विवाह कुछ विलम्ब से होता है। वह ह्रदय से सबको चाहता हुआ अपनी भावनाओं को भली प्रकार से व्यक्त नहीं कर पाता, अक्सर कम बोलता है पर जो बोलता है गहरा बोलता है तथा न्याय प्रिय होता है। यह जातक अगर अपने पुस्तैनी कार्य करता है तो उसे सफलता मिलती है। लोहा, कोयला का कारोबार ऐसे जातक को सफलता देता है। यदि शनि इस भाव में नीच राशिगत अथवा शत्रु राशिगत हो, तो व्यक्ति को अपने परिजनों से धोखा भी मिलता है। उसे अपने भाग्योदय के लिए परिवार से दूर होना पड़ता है तथा लोगों को अपने झूठ से प्रभावित करने वाला होता है।
ऐसे जातक को भाग्योदय के लिए हर दिन हनुमान मन्दिर नंगे पांव जाना चाहिये व शनिवार को सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए तथा तलाब में मछलियों को चारा भी डालना चाहिए।


कुंडली में शिक्षा के योग 

शनि कुंडली के तीसरे भाव में 

तीसरे भाव में स्थित शनि व्यक्ति के पराक्रम को बढाने वाला होता है। यह जातक एक अच्छा सलाहकार होता है इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मिडिया में अच्छा कार्य करता है, और ऐसे कार्य द्वारा ही धन कमाता है तथा एक लम्बी आयु जीता  है । ऐसे व्यक्ति के दो या उससे अधिक भाई बहन हो सकते हैं। अशुभ स्थिति में होने पर यह पराक्रम का नास भी करता है। बहन भाइयों से सम्बन्ध तनावपूर्ण बनते है, जातक आलसी होता है।ई इसे अपने भाग्य को स्वयं बनाना पड़ता है। इसे पूजा पाठ का पूर्ण फल नहीं मिल पाता।
ऐसे जातक को भाग्योदय के लिए नित्य हनुमान चालिसा का पाठ करना चाहिए और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा भेट देना चाहिए, अगर इनका मकान दक्षिण मुखी हो तो उस मकान को छोड़ देना चाहिए । छोटे भाई बहनों के प्रति छमा का भाव रखना चाहिए ।

शनि कुंडली के चौथे भाव मे

चौथे भाव में शनि के स्थित होने पर अधिकतर नकारात्मक फल ही होते हैं, उसका बचपन रोगों से घिरा रहता है  तथा उसका जन्म भी पुराने मकान में होता है। इस भाव में शनि के बली होने पर व्यक्ति जीवन में अपार संपत्ति एवं धनार्जन करते हुए भी उसका उपभोग नहीं कर पता  है, बल्कि दूसरे लोग ही उसके धन का उपभोग करते है। सर्व सुख होते हुए भी उसे एक ऐसा दुःख होता है, जो उसके अवसाद का कारण बनता है। उसे सन्यास धारण करने करने का योग भी होता है। शनि शुभ स्थिति में हो तो मकान बनाने के कार्य से वह धन भी खूब कमा लेता है। पुरखों की संपदा भी मिलती है । अशुभ स्थिति में हो तो हर हाल में नीरस जीवन ही जातक के भाग्य में आता है।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए हर शनिवार को 8 बादाम बहते पानी में बहाना चाहिए, शिव लिंग पे कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए, तथा अपनी स्त्री के अलावां किसी भी पराई स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए ।

शनि कुंडली के पांचवें भाव में  

पांचवें भाव में स्थित शनि के मिश्रित फल होते हैं। जातक यात्रायें अधिक करता है, ज्यादातर भ्रम की स्थिति में रहता है, अपने विचार गुप्त रखता है, राजनितिक बुद्धि अच्छी होता है, अनेक भाषाओं का जानकर होता है। उसे बच्चों से जुड़े हुए खेल- खिलौने, कपडे बनाने से संबंधित कार्य में बहोत सफलता मिलती है।  प्रायः नास्तिक होता है, उसके विवाह में देरी एवं संतान पक्ष में बाधा जैसे फल भी प्राप्त हो सकते हैं। इस भाव में शनि का उच्च राशिगत होना और नीच राशिगत होना दोनों ही नकारात्मक स्थितियां हैं। शनि यहाँ सामान्य बली होकर स्थित हो, तो अधिक शुभफलदाई होता है।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए हर शनिवार को 4 नारियल नदी के बहते पानी में बहाना चाहिए, चमड़े से बनी वस्तुए प्रयोग नहीं करनी चाहिए, बच्चों को बादाम बांटे व उन्हें खिलौने लेकर दे।

कुंडली में संतान का योग 

शनि कुंडली के छठवें भाव में

छठवें भाव में  होने पर शनि को सर्वाधिक शुभ फलदायी बताया गया है। शनि की इस भाव में स्थिति व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता देती है। वह अपने पराक्रम से राजा के सामान जीवन यापन करता है। इस भाव में शनि उच्च राशिगत होने पर ही यह फल प्राप्त होते है। शनि के कारकत्व वाली चीजों का कार्य करने पर वह बहोत सफलता प्राप्त करता है। इस जातक से शत्रु हमेसा परास्त रहते है, यह बहोत चतुर होता है, यात्रा द्वारा लाभ अर्जित करता है। पर शनि के अशुभ अथवा नीच राशिगत होने पर व्यक्ति जीवन भर सिर्फ प्रवास यात्रा ही करता है जो निष्फल होती है। ऐसा जातक ऋण भरता रहता है। अगर कोई बीमारी लगती है तो जीवन पर्यत चलती है, ऐसे लोग अपनी नौकरी में खुद बड़ी बड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं। इस भाव में शनि के शुभ फल 30 वर्ष के बाद ही प्राप्त होते हैं।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए एक काला कुत्ता पालें और उसको रोज अपने हाँथ से भोजन कराये, अपने से निचे कार्य करने वाले को सम्मान दें, भिखारियों की कुछ न कुछ जरुर मदत करें, चमड़े से बनी चीजों का स्तेमाल न करें, पैरों में काले जुते पहने तथा सफ़ेद जुराब का स्तेमाल करें।
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शनि का बारह भाव में फल


शनि कुंडली के सातवें भाव में

सप्तम भाव में शनि को ज्योतिष शास्त्र में  शुभा-शुभ फल देने वाला बताया गया है। हाँ इसका ज्यादातर शुभ फल व्यापार को लेकर कहा गया है जैसे- यह मशीनरी या लौह उद्योग में जातक को बहोत सफलता देता है। ऐसा जातक प्रायः सरकारी नौकरी छोड़कर भी व्यापर में आ जाते हैं। इन्हें अपनी पत्नी को अपना पार्टनर बनाकर कार्य करना चाहिए। पर वैवाहिक जीवन के लिए शनि बहोत शुभ फल नहीं दे पाता, कभी तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है कभी जीवन साथी अपने से एकदम उलट व्यवहार वाला मिलता है। पर विवाह के बाद जातक को ज्यादातर तरक्की ही देता है। अति बलवान शनि यहाँ बहोत शुभ नहीं होता  बल्कि सामान्य बली शनि अवस्य कुछ लाभप्रद होता है।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए एक नारियाल लेकर उसे ऊपर से थोडा गोलाकार काट लें और उसमे चीनी भरकर किसी पीपल के पेड़ के पास जमीन में गाड दे, जिसको कुछ समय बाद चींटियाँ बिल बनाकर उस चीनी को लम्बे समय तक खाती रहेंगी, किसी  कृष्ण मंदिर में अलंकृत बांसुरी दान कर आये, परायी स्त्री की तरफ कभी भी गलत नजर से न देखे ।

कुंडली में  मंगल दोष

शनि कुंडली के आठवें भाव में 

आठवां भाव शनि का कारक भाव है। इस भाव में शनि के बलवान होने से जातक दीर्घायु होता है उसे किसी रिश्तेदार की प्रोपर्टी मिलने का योग होता है, वह गूढ़ विषयों का ज्ञाता होता है, उसका अध्यात्मिक ज्ञान बड़े स्तर का होता है, ऐसे छात्र पि.एच.डी करते हैं, यह किसी भी विषय को गहराइ से समझते हैं। अगर इस भाव में शनि निर्बल और पीड़ित होकर स्थित हो तो भाइयों से शत्रुता होती है, पिता को कष्ट पहुँचता है, अगर कुंडली में बुध और राहु अशुभ हुए तो शनि के अशुभ फलों में वृद्धि हो जाती है। यहाँ का शुभ शनि व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता देता है तथा जीवन में कभी भी धन की कमी महसूस नहीं होने देता।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए अपने धर्म के हिसाब से किसी धार्मिक ग्रन्थ का कुछ समय नित्य अध्यन करना चाहिए, शिव लिंग पे दूध चढ़ाना चाहिए, चाँदी का छल्ला पहना चाहिये व शिव जी का चाँदी का ही पेंडेंट पहना चाहिए, साकाहार अपनाना चाहिये तथा काला उड़द बहते हुए पानी में शनिवार को बहाना चाहिए।
नोट- इनमे से एक अथवा सभी उपाय अपनी समर्थ अनुसार करना चाहिए।

कुंडली में आयु विचार 

शनि कुंडली के नवम भाव में

नवें भाव में स्थित  शनि के ज्यादातर शुभ फल होते हैं। उच्च राशिगत होने पर वह भाग्य को बढ़ाता है, पर भग्योदय 35 से 36 वर्ष की आयु के पश्चात् होने की संभावना होती है। यह जातक यात्राएँ अधिक करता है और उसकी यह यात्रा लाभ देने वाली होती है, यह जातक अपने कई घर बनवाता है। मेरे अनुभव के अनुसार ज्यादातर धार्मिक स्थलों के गाइड, बड़ी धार्मिक यात्राओं का आयोजन और संपादन करने वाले लोगों की कुंडली में शनि नवें भाव में ही होता है। जातक के माता पिता के लिए भी यह शुभ होता है व आने वाली कई पीढ़ियों के लिए भी यह शनि सुखकारी होता है । वहीँ नीच राशिगत व पीड़ित  होने पर शनि व्यक्ति को नास्तिक बनाता है और दुर्भाग्य के कारण सफलताओं में भी बाधा पहुँचाने वाला होता है।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए अशुभ शनि के लिए काले गाय को अपने हाँथ से घी से चुपड़ कर रोटी  खिलाये अगर यह गाय किसी धार्मिक स्थल, मठ आदि में हो तो उत्तम, गुरुवार का व्रत करे और गुरुओं का सम्मान करे व उन्हें पीले रंग का वस्त्र दान दे, किसी मंदिर की साफ सफाई करे।


शनि कुंडली के दशम भाव में 

शनि के लिए दशम भाव उनका कारक भाव माना गया है। इस भाव में शनि बहोत ही लाभदायक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को कर्म का कारक माना जाता है और दशम भाव जातक के कर्म का ही होता है। यहाँ बैठा शुभ स्थिति का शनि जातक स्व पराक्रम से उच्च पद, मान-सम्मान, सफलता, धन-धान्य सभी प्रदान करता है, यह जातक अपनी सफलता का आनंद तब तक लेता है जबतक वह कोई प्रोपर्टी न खरीद ले यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है । ऐसे जातक को  एक स्थान पर बैठ कर कार्य करना चाहिए तथा पिता के साथ मिलकर कार्य नहीं करना चाहिये, बल्कि अपना खुद का कुछ स्वतंत्र कार्य करना चाहिए, इस भाव में शनि के निचस्त अथवा निर्बल होने पर व्यक्ति आलसी प्रकृति का होता है और अपने आलस्य के कारण ही प्रयास करने से बचने लगता है। ऐसे जातक को पिता का सुख कम मिलता है अथवा उनका विछोह भी सहना पड़ता है।
ऐसे जातक को अपने भाग्योदय के लिए अशुभ शनि हेतु  कसी शिव मंदिर में नित्य जाकर दर्शन करना चाहिए, गरीब व असहाय लोगों को भोजन करवाना चाहिये, अपने अधिनस्त प्यून का रोज हाल-चाल जानना चाहिये और उसको प्रोत्साहन देना चाहिए, प्रति दिन पीले रंग का तिलक लगाना चाहिये, मांसाहार का त्याग करना चाहिए, तथा अपने नाम से कोई प्रोपर्टी नहीं लेनी चाहिये।

शनि कुंडली के ग्यारहवें भाव में

ग्यारहवें भाव में स्थित  शनि की स्थिति ज्यादातर शुभ फलकारी होती है। इस भाव में शनि चाहे किसी भी स्थिति में विराजमान हो , वह व्यक्ति को 30 वर्ष के पश्च्यात ही आय प्राप्ति में सहायता प्रदान करता है। उससे पूर्व व्यक्ति को अपनी शिक्षा एवं प्रतिभा के अनुसार रोजगार की प्राप्ति नहीं हो पाती है। यह जातक अपनी चतुर निति से  बहोत धन कमाता है। इस जातक की उम्र भी अधिक होती ही इसके ज्यादातर मित्र इससे सलाह लेते हैं। यह पैसे कमाने के मामले में एक जैसा नहीं रहता कभी तो यह बहोत धन कमा लेता है और कभी बिलकुल भी नहीं । यह बहोत कल्पनाशील होता है इसे क्रिएटिव भी कह सकते हैं। पर इस स्थान का शनि अशुभ अथवा नीच राशिगत हुआ तो यह जातक रोगी भी होता है, यह अपनी गलतियों से अपना नुकसान कर ल्रेता है और चापलूस भी होता है।
ऐसे जातक अपने भाग्योदय के लिए शनि की अशुभ परिस्थिति में सर्व प्रथम अपना चरित्र अच्छा रखें और मांसाहार त्याग दें, किसी शिव मंदिर में दूध में कुछ जल मिलकर शिवलिंग पे चढ़ाएं, किसी भी पर स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध न बनाएँ, किसी भी कार्य की सुरुआत कर के अधुरा न छोड़ें तथा नित्य कौओं कटोरी में दूध-भात रख कर खिलाएं । 


शनि कुंडली के बारहवें भाव में

बारहवें भाव में शनि की स्थिति मध्यम फल देने वाली कही गई है। यह जातक दुश्मनों पे विजय प्राप्त करने वाला होता है यह दुश्मन भौतिक और आत्मिक दोनों हो सकते है, वह जातक कोई भी कार्य बहुत सोच विचार कर करता है। उसके कई मकान होते हैं, अपने जन्मस्थान से बहुत दूर विदेशों में अपने कार्य द्वारा धन कमाता है। जिससे वह अपने जन्म स्थान में संपत्तियां खड़ी कर पाता है। शनि इस भाव में नीच राशिगत अथवा शत्रु राशिगत होने पर जातक अत्यधिक सोच-विचार करने वाला होता है। आत्मविश्वास में अत्यधिक कमी होती है। वह जल्दी  संक्रमित होकर बीमार हो जाते हैं, तथा अक्सर पैरों की पीड़ा से त्रस्त रहते हैं।
ऐसे जातक अपने भाग्योदय के शनि के अशुभ स्थिति में 4 नारियल लेकर उसे बहते हुए पानी में बहाना चाहिए, किसी संत के सत्संग में जाना चहिये और कुछ समय प्रेम पूर्वक संत द्वारा कही जा रही कथा का श्रवण करना चाहिए, तथा झूठ बिलकुल नहीं बोलना चाहिए। काली गाय और काले कुत्ते को नित्य रोटी खिलानी चाहिये ।  नोट- इनमे से एक अथवा कई उपाय एक साथ अपनी समर्थ अनुसार करना चाहिए।

।।इति शुभम्।।

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