ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

swadhisthana chakra I स्वाधिष्ठान चक्र एक परिचय

swadhisthana chakra । स्वाधिष्ठान चक्र एक परिचय 


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स्वाधिष्ठान चक्र के लिए हमारे योग शास्त्रों में बहुत कुछ कहा गया है। यह शरीर के चक्र क्रम में दूसरा चक्र है।

स्वाधिष्ठान चक्र के देवता- भगवान विष्णु हैं।  यहाँ यह बताते चलें कि देवताओं को लेकर कई मत-मतान्तर है सो इसपर ध्यान न देकर मुख्य गुण-धर्म पे ध्यान देंना उचित होगा।  इस चक्र की देवी राकनी हैं जो वनस्पति की देवी हैं।  भगवान विष्णु को हम पालनहार कहते हैं क्यूँ की यह चक्र प्रजनन अथवा गर्भ स्थान का है ,बिज अंकुरण का है चाहे मनुष्य हो अथवा वनस्पति सबका पालन बिष्णु ही करते हैं। इस चक्र का तत्व है जल और इसका रंग है सिंदूरी, नारंगी है वस्त्र चमकदार, सुन्दर पिला रंग है और इस चक्र का बीज मंत्र  वं  है।

मूलाधार चक्र से थोड़ा ऊपर और नाभि से निचे यह चक्र स्वाधिष्ठान चक्र के रूप में स्थित है। यह स्व+स्थान नामक शब्द से बना है स्व को जहाँ आत्मा से जोड़कर देखते हैं वहीँ स्थान अर्थात जगह को कहते हैं। इसी लिए इसे अवचेतन मन का स्थान भी कहते हैं जहाँ जन्म के पूर्व की सभी स्मृतियाँ परछाई रूप में संग्रहित होती है।स्वाधिष्ठान चक्र में छः पंखुडियो वाला कमल होता है। यह कुल छः पंखुड़ियों वाला और छः योग नाड़ियों का मिलन स्थान है। स्वाधिष्ठान चक्र के जल तत्व में मूलाधार का पृथ्वी तत्व विलीन होने से यह चक्र कुटुम्ब और मित्रों से सम्बन्ध बनाने और उसकी रक्षा करने का भाव जगाता है। इस चक्र के कारण मन में भावना जड़ पकड़ने लगती है। व्यक्ति प्रबल अहंकार रूप में अभिमानी होने लगता है जो उसके लिए बहुत ही खतरनाक होता है। यह चक्र अपान वायु के अधीन होता है। 
वायु के सम्बन्ध में हमारे योग शास्त्रों में कहा है की यह पांच प्रकार की होती है जैसे- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।
1.व्यान वायु चरबी तथा शरीर में मांस संबंधित कोशिकाओ के लिए कार्य करती है।
2.समान वायु शरीर का संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है यह सच है कि हड्डियों से ही शरीर  संतुलन बनता है।
3.अपान वायु का वह है जो गुदा द्वार से बाहर निकलती है जिसे हम आज की भाषा में एसिडिटी कहते हैं यह शरीर के रस में होती है।
4.उदान वायु शरीर के उपर भाग में जाती है। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है। इसे हम स्वर अथवा डकार भी कह सकते हैं। 
5. प्राण वायु हमारे शरीर को जीवित रखती है  इसे हम आज की भाषा में ऑक्सीजन कह सकते है। यह वायु खून  में प्राण पहुंचती है।

स्वाधिष्ठान चक्र द्वारा शरीर व भावना पे अधिकार 

अगर व्यक्ति की ऊर्जा स्वाधिष्ठान चक्र पर ही एकत्रित हो जाये तो यह चक्र शक्ति के वेग से तीव्र गति से घुमने लगता और इसका संतुलन बिगड़ जाता है जिससे जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता बढ़ जाती , क्यूँ कि अत्यधिक मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को वेहोशी में धकेलता है । फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आप के बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन कभी सच नहीं होते।  मेरे अनुभव में यह आया है कि जब भी यह चक्र दूषित होता है तो दैहिक सम्बन्ध बनाने को लेकर उत्सुकता बढ़ जाती है जिससे चारित्रिक पतन होने का भी खतरा बढ़ जाता है इस चक्र के दूषित होने से कभी कभी व्यक्ति के विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम हो जाते हैं। जीवन में ऐसा सब करते हुए जीवन कब ब्यतीत हो जायेगा व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा और हाँथ खाली के खाली रह जायेंगे। 

इस चक्र को धार्मिक चक्र भी कहते हैं इस चक्र से ही प्रजनन क्रिया संपन्न होती है तथा इसका सम्बन्ध सीधे चंद्रमा से होता है। मनुष्य के शरीर में तीन चौथाई भाग जल है। चन्द्र मन का कारक है यह मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है। स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से सम्बंधित हैं और (इस चक्र पर चन्द्रमा का पूर्ण प्रभाव होता है क्यूँ की ज्योतिष शास्त्र में च्नाद्र्मा को जल का कारक ग्रह कहा गया है और हम सभी जानते हैं की शारीर विज्ञान के अनुसार सर्वाधिक जल इसी स्थान में होता है)। इन सभी कार्यों का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से ही होता है। इस चक्र के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित करने की कोशिश रहती है। यह चक्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकाश करता है।

स्वाधिष्ठान चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां


सभी प्रकार के यौन रोग, प्रजनन सम्बंधित बीमारियां, अंतड़ी, गुर्दे की बीमारियाँ, बाँझपन, मूत्र रोग, नपुन्सकता, जैसी बिमारियों के साथ-साथ मानसिक व भवनात्मक अस्थिरता, पानी से भय तथा शारीरिक संबंधों में अत्यधिक तीव्रता अथवा न्यूनता भी देखि जाती है। मरे अनुभव में आया है की आज के समय में दूषित और अनाप सनाप खान पान और अत्यधिक तनाव की वजह से ज्यादातर महिलाओं का यह चक्र असामान्य हो जाता है जिसकी वजह से वह चिड-चिड़ी हो जाती हैं, उनंके पीरियड चक्र अनियमित हो जाते हैं, वह जीवन साथी के साथ दैहिक व भवनात्मक संबंधों को लेकर असहज हो जाती हैं सायद इसी कारण से मेडिकल साइंस की आज कि रिपोर्ट के अनुसार देखें तो बाँझपनयौन बिमारियों की बाढ़ सी आई हुई है।

स्वाधिष्ठान चक्र जगाने की विधि 

सबसे पहले अपनी चेतना को नकारत्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए इसके उपरांत नित्य नियम पूर्वक नाभि से कुछ निचे ध्यान लगाकर नारंगी आभा की कल्पना करते हुए कुछ समय एक पीले रंग के आसन पर बैठकर वं मंत्र का उच्चारण करना चाहिए (मन्त्र का एक ही अक्षर है जो ऊपर दिए हुए फोटो के मध्य में अंकित है)  इस प्रकार की निरंतर क्रिया से धीरे धीरे यह चक्र जागृत होने लगता है ।

मैंने अपने अनुभव में यह देखा है कि Carnelian नामक स्टोन की अगुठी, पेंडेंट, अथवा ब्रेसलेट अदि पहनने से यह चक्र संतुलित करने में मदत मिलती है। आपने ज्योतिषी से सलाह लें अगर कुंडली में गुरु योगकारक अथवा शुभ स्थिति में हो तो पुखराज भी धारण किया जा सकता है। 

स्वाधिष्ठान चक्र जब संतुलित (Balance) हो जाता है अर्थात इसका जागरण हो जाता है तो प्रभाव स्वरूप व्यक्ति के अन्दर से क्रूरता, गर्व आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वाश आदि दुर्गुणों का नाश होता है तथा क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है। सिद्धयां प्राप्त करने के लिए जरुरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त होकर प्रसन्नता, आत्मविश्वास, निष्ठा और उर्जा जैसे गुण पैदा हो, वहीँ शरीर में ज्यादातर विकार जल तत्त्व के ठीक न होने से होते है इसके इस  चक्र के जागृत होने पर किसी भी शारीरिक विकार का नाश हो जाता है ,जल सिद्धी की प्राप्ति हो जाती है । 
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।।इति शुभम्।।

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