vastu shastra purpose । वास्तु शास्त्र का उद्देश्य
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वास्तु शास्त्र का उद्देश्य |
यह अक्षरसः सत्य है कि प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए हर पल विविध प्राकृतिक बलों जैसे जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश के बीच एक परस्पर क्रिया होती रहती है, जिसका व्यापक प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाली मनुष्य जाति के अलावा अन्य जिव-जंतुओं तथा वनस्पति पर भी पड़ता है। इन्हीं पांच तत्वों के बीच होने वाली इस क्रिया द्वारा हमारे निर्माण पर पड़ने वाले प्रभाव को वास्तुशास्त्र के नाम से जाना जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य, हमारे स्वभाव, हमारे भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। वास्तु शास्त्र हमारे आस पास की महान परिशोध है एवं यह हमारे जीवन को प्रभावशाली ढंग से प्रभावित करता है। वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। वास्तु शास्त्र, कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिलाजुला रूप है।
वास्तुपुरुष मंडल
हमारे जीवन में वास्तु का महत्व
यह माना जाता है कि वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने एवं कुछ गलत चीजों से हमारी रक्षा करने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वास्तुशास्त्र नकारात्मक तत्वों से हमारी रक्षा कर हमें सदा सुरक्षित वातावरण में रखता है। वास्तुशास्त्र सदियों पुराना निर्माण का विज्ञान है, जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन भी सम्मिलित हैं, जो किसी भी भवन निर्माण में बहुत अधिक महत्व रखते हैं। इनका प्रभाव मानव की जीवन शैली एवं रहन सहन पर पड़ता है।वास्तु शास्त्र का आधार
वास्तुशास्त्र का मूल आधार विविध प्राकृतिक ऊर्जाओं पर निर्भर है जैसे- पृथ्वी से ऊर्जा प्राप्ति, दिन के उजाले से ऊर्जा प्राप्ति, सूर्य की ऊर्जा या सौर ऊर्जा, वायु से ऊर्जा प्राप्ति, आकाश से ऊर्जा प्राप्ति, एवं इस लौकिक ब्रह्मांड से ऊर्जा प्राप्ति तथा साथ ही चंद्रमा व सभी अन्य ग्रह की उर्जा भी इसमें म्मिलित है। इन सभी ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होती है। जब हम इन सभी ऊर्जाओं का संतुलित उपयोग करते हैं, तो यह हमें अत्यंत आंतरिक खुशी, मन की शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए पुष्टि प्रदान करती हैं। वास्तु को किसी भी प्रकार के कमरे, घर, कार्यालय या आवासीय परिसर, संपत्ति, बंगले, विला, मंदिर, नगर नियोजन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वास्तु छोटी एवं बड़ी परियोजनाओं एवं उपक्रमों पर भी सामान रूप से लागू होता है। इसमें पूर्ण सामंजस्य स्थापित करने के लिए तीन बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें जल, अग्नि एवं वायु शामिल हैं। वास्तु के अनुसार, वहां पूर्ण सद्भाव और शांति होगी, जहां यह तीनों बल अपनी सही जगह पर स्थित होंगे। अगर इन तीन बलों की जगह में आपसी परिवर्तन यानी गड़बड़ी होती है, जैसे कि जल की जगह वायु या अग्नि को रखा जाए तथा अन्य ताकत का गलत स्थानांतरण हो तो इस गलत संयोजन का हमारे जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण जीवन में सद्भाव की कमी एवं अशांति पैदा होती है।अगर निर्माण के संयोजन में कोई दोष रह जाता है, तो उसे वास्तु दोष कहा जाता है। जिसे विभिन्न उपायों से दूर किया जा सकता है। अथवा दोष के कारण मिल रहे पीड़ादायक प्रभाव को कम किया जा सकता है।वास्तु शास्त्र आज के परिवेश में
वर्तमान समय में अनेक वास्तुविद् ऐसे हैं जिनका मानना है कि यदि घर,कार्यालय या औद्योगिक परिसर में किसी भी प्रकार का वास्तुदोष है, तो उसे तोड़ फोड़- किये बिना दूर नहीं किया जा सकता । ऐसे विद्वान वास्तुविद् केवल उन्ही सिद्धांतों के आधार पर चलते हैं, जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन वास्तुशास्त्र में हुआ है। अब समय बदला है, जिससे अनेक परिस्थितियां बदली हैं। ऐसी स्थिति में बदली परिस्थितियों को अनुकूल करने के उपाय भी अवश्य हैं।अथवा उपायों को खोजा या प्रतिपादित भी किया जा सकता है। यहीं पर किसी विद्वान् की सही परख हो सकती है। जो वास्तुविद् बिना तोड़-फोड़ के वास्तुदोष दूर न होने की बात करते हैं, उन्हें किताबी ज्ञान होने के अलावा व्यवहारिक ज्ञान बिलकुल नहीं होता। सच तो यह है कि हर समस्या का समाधान होता है। मैंने अपने जीवन में वास्तु सलाहकार के नाते हजारों विजिट किये है जिनमे बड़े मामूली से फेर-बदल करने से बहोत अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें- जैसे आजकल किचन में एक ही स्लैब पे आप का चूल्हा और सिंक दोनों होता है अर्थात जल और अग्नि दोने एक ही प्लेटफोर्म पे आ गए, अब यह वास्तुशास्त्र के अनुसार एक भयंकर दोष हो गया, ऐसे जगह पे बनने वाला आहार शुद्ध नहीं रह गया, तो अब सवाल उठता है कि ऐसे में क्या करें, इस दोष को कैसे दूर करें, इसे तोडना आज के समय के हिसाब से बहोत दुष्कर कार्य होगा, अब इसके लिए एक साधारण उपाय देखते है जैसे- सिंक और चूल्हे के बिच में एक बाम्बुसूट जो एक प्रकार की वनस्पति है, जो बड़ी आसानी से किसी फेंगसुई का सामान बेचने वाली दुकान में मिल जायेगा रख दें, अब हुआ यह कि जल से पैदा हुई लकड़ी और लकड़ी से जली आग अर्थात एक साधारण ही सही पर उस स्थान पे कारगर उपाय हो गया और वहां प्रकृतिक बैलेंस चक्र निर्मित हो गया।
वास्तु उपचार
आज विज्ञान का युग हैं। आज आधुनिक रूप से आधुनिक यंत्रो द्वारा सटीक रूप से Positive - Negative ऊर्जाओं का सोधन कर पाना संभव हुआ है अगर संबंधित स्थान पे नकारात्मक ऊर्जा है अथवा ऊर्जा का अभाव है अर्थात वहां शून्य ऊर्जा है तो वहां कैसे जीवन का सुख प्राप्त होगा, ऐसे में उस स्थान पे प्राण ऊर्जा का सामंजस्य स्थापित करना होता है, जिसके लिए धरती के चुम्बकीय क्षेत्र उत्तरी ध्रुव- दक्षिणी ध्रुव व अंतरिक्ष की शुभ ऊर्जाओं को आकर्षित करना होगा जिसके लिए आवस्यकता अनुसार वैज्ञानिक यंत्र, पिरामिड, ऊर्जा प्लेट, क्रिस्टल एवं रत्न-उपरत्नों के कोणीय प्रभाव, तथा धातुवों से बनी विभिन्न कोणीय आकृतियों का प्रयोग करना होता है जिससे वह स्थान उर्जा से परिपूर्ण हो जायेगा। अतः निःसंकोच किसी कुशल वास्तुशास्त्री से संपर्क कर उनसे परामर्श लेना चाहिए और संबंधित स्थान का पूरे वैज्ञानिक विधि से जांच करवानी चाहिए।।।इति शुभम्।।
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