kaal sarp yog ke prakar । कालसर्प योग के प्रकार
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कालसर्प योग |
प्रीय पाठकों मै उदय प्रकाश शर्मा एक बार फिर आप सभी का स्वागत करता हूँ, कालसर्प योग को लेकर मेरे पिछले लेख में आप ने कुंडली के प्रथम भाव से छठे भाव तक बनने वाले अनंत, कुलिक, महापद्म आदि 6 प्रकार के कालसर्प योग तक को जाना, आइये अब आगे के 6 अन्य योगों को जाने। जिन पाठकों ने मेरे पिछले लेख को नहीं पढ़ा है उनके लिए मै यहाँ उस लेख का लिंक दे रहा हूँ।
कालसर्प योग और उपाय
मुझे कुछ पाठकों ने मैसेज लिखा की गुरु जी यह कालसर्प योग तो होता ही नहीं, इसका किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता तो उन्हें मै इतना ही कहना चाहूँगा कि काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है. कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी खोज बाद में हुई, अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता, अब जैसे ब्लॉग पहले नहीं होता था, ईमेल पहले नहीं होती थी, लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता, मगर आज यह मौजूद हैं उसी तरह युग युगांतर से हर विषय में शोध कार्य होता रहता है और जीवन में जो अनुभव में आता है, वह प्रतिपादित भी होता है तो उसे अपने अनुभव की कसौटी पर परख कर हमें स्वीकार्य करना भी पड़ता है।
कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता ही कही जाएगी। कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है. कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है, कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं । इसे एकदम से नकार देना भी उचित न होगा।
कालसर्प योग बारह प्रकार के माने गए हैं.अन्य विवेचना में यह 144 कहे गए हैं, पर हम यहाँ मुख्य 14 प्रकार के कालसर्प योग पर ही लिख रहे है। जो अधिकतर राहू की दशा-अन्तर्दशा में फलित होते हैं।
इसे एक छोटे से उदाहरण से समझें तो जब किसी छात्र की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर हो रहे हों व राहू केतु पंचम भाव को प्रभावित कर रहे हों तो अपनी 15-16 वर्ष की आयु के दौरान उस छात्र का ध्यान शिक्षा की और से डगमगाने लगता है, जबकि इस से पहले वह एक बेहतरीन छात्र के रूप में जाना जाता है। यह सत्य है की कालसर्प का योग का प्रभाव जीवन पर कहीं न कहीं पड़ता ही है। आइये अब आगे के अन्य कालसर्प योग को जानें।
7. तक्षक कालसर्प योग । takshak kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है।
इस योग के फल स्वरूप जातक के लिए लंबी यात्रायें कष्टकारक होती हैं। इस कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्तिा का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्तिा मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। ये किसी न किसी गुप्त रोग से आजीवन पीड़ित रहते हैं। इन्हें अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रू षड़यंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्तिा उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता। मैंने अपने अनुभव देखा है की यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपनी ही भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना-करना शुरु कर दें साथ ही दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।
*कालसर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
* देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
* शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
* रोजाना पारद शिवलिंग पर 108 बेल पत्र ' ॐ नमः शिवाय ' मन्त्र बोलते हुए बेल पत्र अर्पित करें।
इस योग के फल स्वरूप जातक के लिए लंबी यात्रायें कष्टकारक होती हैं। इस कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्तिा का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्तिा मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। ये किसी न किसी गुप्त रोग से आजीवन पीड़ित रहते हैं। इन्हें अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रू षड़यंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्तिा उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता। मैंने अपने अनुभव देखा है की यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपनी ही भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना-करना शुरु कर दें साथ ही दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।
तक्षक कालसर्प योग का उपाय
* अपने शयनकक्ष में मोर पंख लगाएं।*कालसर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
* देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
* शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
* रोजाना पारद शिवलिंग पर 108 बेल पत्र ' ॐ नमः शिवाय ' मन्त्र बोलते हुए बेल पत्र अर्पित करें।
8 कर्कोटक कालसर्प योग । karkotak kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में हों तो कर्कोटक नामक कालसर्प योग बनता है।इस योग के फल स्वरूप जातक को नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करनेका भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्तिा से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। शत्रू षड़यंत्रा व अकाल मृत्यु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्न उपाय कर सकते हैं।
कर्कोटक कालसर्प योग का उपाय
* जातक को हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।* काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
* सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
*अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
* किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
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kalsarp yog |
9 शंखचूड़ कालसर्प योग। shnkhchud kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है।इस यो के फल स्वरूप जातक को पिता से पूर्ण सुख नहीं मिलता।इनका भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। इसके साथ ही उसका अपना अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या उसे झेलनी पड़ती है। अधिक सोच के कारण शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इन सब कारणों के कारण सरकारी महकमों व मुकदमेंबाजी में भी उसका धन खर्च होता रहता है। यह ननिहाल व बहनोइयों से भी छले जाते हैं। इनके मित्र भी धोखाबाजी करने से बाज नहीं आते। इनका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। इन्हें हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए उसे अपनों को अपनाना पड़ेगा, अपनो से प्यार करना होगा, धर्म की राह पर चलना होगा एवं मुंह में राम बगल में छूरी की भावना को त्यागना होगा तो जीवन में बहुत कम कठीनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
शंखचूड कालसर्प योग का उपाय
* किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्र धारण करें श्री शनिदेव का तेलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्र की तीन माला जप करें। जप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।* महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
* चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहुर्त मेंअपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
10 घातक कालसर्प योग । ghatak kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाता हैं।इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होती है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाये उसका जी नहीं भरता है। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रा में उसे अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्र भी धोखा देते रहते हैं। यदि यह जातक रिश्वतखोरी व दो नम्बर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है साथ ही राजनैतिक क्षेत्रा में बहुत सफलता प्राप्त करता है।
घातक कालसर्प योग का उपाय
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।* एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
* शनिवार का व्रत रखें, श्री शनिदेव का तेलाभिषेक व पूजन करें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल आदि का समय-समय पर दान करें।
* सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें।
11 विषधर कालसर्प योग । vishdhar kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर नामक कालसर्प योग बनाता हैं।इस योग के फल स्वरूप जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं स्मरण शक्ति का प्राय: ह्रास होता है जिसकी वजह से विद्याध्यन में कुछ बाधा रहती है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मतान्तर या झगड़ा- झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है। लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता रहता है। वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है। धन सम्पत्ति को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। उसे सर्वत्र लाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं। संतान पक्ष से थोड़ी-बहुत परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है।
विषधर कालसर्प योग का उपाय
* श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।* सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
* सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
* प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - ॐ हर हर महादेव कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा हर रोज श्रावण के महिने में करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
12 शेषनाग कालसर्प योग । sheshnag kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग नामक कालसर्प योग बनता है।शास्त्राोक्त परिभाषा के दायरे में यह योग परिगणित नहीं है किंतु व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रु षड़यंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है। उनके सिर पर बदनामी की कटार हमेशा लटकी रहती है। शारीरिक व मानसिक व्याधियों से अक्सर उसे व्यथित होना पड़ता है और मानसिक उद्विग्नता की वजह से वह ऐसी अनाप-शनाप हरकतें करता है कि लोग उसे आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगते हैं। लोगों की नजर में उसका जीवन बहुत रहस्यमय बना रहता है। उसके काम करने का ढंग भी निराला होताहै। वह खर्च भी आमदनी से अधिक किया करता है। फलस्वरूप वह हमेशा लोगों का देनदार बना रहता है और कर्ज उतारने के लिए उसे जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। उसके जीवन में एक बार अच्छा समय भी आता है जब उसे समाज में प्रतिष्ठित स्थान मिलता है और मरणोपरांत उसे विशेष ख्याति प्राप्त होती है।
शेषनाग कालसर्प योग का उपाय
* किसी शुभ मुहूर्त में 'ॐ नम: शिवाय' मन्त्र की 11 माला जप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्र आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।* हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्र सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
* किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
* काल सर्प दोष निवारण यंत्र व महामृत्युंजय यंत्र घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और रसोईं में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
* किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
* शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग की आकृति भी ।
नोट- प्रिय पाठक गण आप को यह लेख कैसा लगा इसपर अपने विचार और सुझाव जरुर लिखें जिससे प्रोत्साहित होकर मै ज्योतिष के अन्याअन्य विषयों पर निरंतर आप के लिए कुछ न कुछ लिकता रहूँ ।
।।इति शुभम्।।
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