kaal sarp yog aur upay। कालसर्प योग और उपाय
![]() |
kaal sarp yog |
कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे। जिनमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व.पं.जवाहर लाल नेहरू का नाम लिया जा सकता है। स्व. मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं। वहीँ इस योग के अगर सकारात्मक प्रभाव मिलते हैं तो साथ ही नकारात्मक फल भी इस योग की उत्पत्ति है। अत: किसी भी स्थिति में व्यक्ति को मायूस नहीं होना चाहिए और उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमेशा अपने चहुंमुखी प्रगति के लिए सतत सचेष्ट रहना चाहिए।
यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यहाँ हम यह कहना चाहेंगे कि अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर ही है, इसलिए ग्रहों को इसका दोष नहीं देना चाहिए बल्कि अपने शुभ कर्मों को बढ़ाना चाहिये व अशुभ कर्मों में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए तथा इश्वर पे भरोषा कर, हमेशा आशावान रहना चाहिये। प्रिय पाठकों आइये मै आप का ज्योतिष मित्र पं. उदय प्रकाश शर्मा आपको जन्मकुण्डली में बनने वाले सभी 12 प्रकार के कालसर्प योग का क्या क्या प्रभाव होता है एवं उसका क्या उपाय है? अपने अल्प ज्ञान और अनुभव द्वारा लिखने का प्रयास करता हूँ और आशा करता हूँ की आप को यह लेख जरुर पसंद आयेगा ।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतू ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। क्योकि कुंडली के एक घर में राहु और दूसरे घर में केतु के बैठे होने से अन्य सभी ग्रहों से मिलने वाले फल रुक जाते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में 12 प्रकार के कालसर्प योगों का वर्णन किया गया है-
जिस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल दोष होने पर दांपत्य-सुख में हानि पहुँचने की सम्भावना बनती है, ठीक उसी प्रकार कुंडली के द्वादश भावों में राहु या केतु होने पर भी जीवन के कई सुखों को हानि पहुँच सकती है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतू ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। क्योकि कुंडली के एक घर में राहु और दूसरे घर में केतु के बैठे होने से अन्य सभी ग्रहों से मिलने वाले फल रुक जाते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में 12 प्रकार के कालसर्प योगों का वर्णन किया गया है-
जिस प्रकार इन पांच स्थानों में मंगल दोष होने पर दांपत्य-सुख में हानि पहुँचने की सम्भावना बनती है, ठीक उसी प्रकार कुंडली के द्वादश भावों में राहु या केतु होने पर भी जीवन के कई सुखों को हानि पहुँच सकती है।
कालसर्प योग के प्रकार
1.अनंत, 2.कुलिक, 3.वासुकि, 4.शंखपाल, 5.पद्म, 6.महापद्म, 7.तक्षक, 8.कर्कोटक, 9.शंखचूड़ 10.घातक, 11.विषाक्त, और 12.शेषनाग।1 अनंत कालसर्प योग । ananat kalsarp yog
जन्मकुंडली में जब राहु लग्न में व केतु सप्तम भाव में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है।फल स्वरूप जातक को व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसे विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं, किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डांवाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चीज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं।
अनंत कलसर्प योग का उपाय
* जातक 'ॐ नमः शिवाय मन्त्र' मन्त्र का अधिकाधिक मात्रा में जप करता रहे।* विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
* देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
* शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
* हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
* महामृत्युन्जय मन्त्र का जाप नित्य 108 बार करने से भी अनंत काल सर्प दोष की शान्ति होती है।
* घर में मयूर (मोर) पंख रखना शुभ होता है।
जन्मकुण्डली में राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य हों तो कुलिक नाम कालसर्प योग बनता है।
इस योग के फल स्वरूप जातक को सदैव कोई न कोई रोग हुआ रहता है। प्रायः मुख व गुदा संबंधी रोग होते हैं। गले के ऊपर का अंग दोषपूर्ण होता है।अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है तथा वह सदा भ्रम की स्थिति में रहता है। वैसे तो उसका वैवाहिक जीवन सामान्य रहता है परंतु आर्थिक परेशानियों की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्रों द्वारा धोखा, संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतर गिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। परंतु इस फल को वह पूर्णतय: सुखपूर्वक भोग नहीं पाता है।
कुलिक कालसर्प योग का उपाय
* लग्न से सम्बंधित रत्न ज्योतिषीय सलाह लेकर धारण करें।* विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
* शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
* हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
* श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार और मंगलवार का व्रत रखें और शनि मंदिर में जाकर भगवान शनिदेव कर पूजन करें व तैलाभिषेक करें, इससे तुरंत कार्य सफलता प्राप्त होती है।
* सिद्ध कालसर्प योग शांति यंत्र पूजा घर में स्थापित करें।
* नाग की आकृति की चांदी की अंगूठी बनवाकर पहनें।
वासुकि कालसर्प योग । vashuki kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब राहु तीसरे घर में और केतु नवम भाव में और इनके बीच सारे ग्रह स्थित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है।फल स्वरूप जातक को प्रायः अपने पारिवारिक सदस्यों और छोटे भाई-बहनो के कारण अनेक कष्ट और तनाव झेलने पड़ते हैं। रिश्तेदार एवं मित्रगण उसे प्राय: धोखा देते रहते हैं। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक धन खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता संदिग्धा रहती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से प्रतिकूलता रहती है। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म में रूचि नहीं होती। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्रा में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्ताम भाग्य का निर्माण भी होता है।
वाशुकी कालसर्प योग का उपाय
* 7 बुधवार या शनिवार को एक पानी वाला नारियल बहते पानी में बहाएं।* नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
* प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्र जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
* महामृत्युंजय मंत्रों का जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें और मंगलवार को हनुमान जी को चोला चढ़ायें।
* किसी शुभ मुहूर्त में नाग यंत्र को अभिमंत्रित कर धारण करें।
शंखपाल कालसर्प योग । shankhpal kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब राहु चौथे भाव में और केतु दशवें भाव में हो इनके बीच सारे ग्रह स्थित हों तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है।जातक को घर, वाहन, माता का अपेक्षित सुख नहीं मिलता । कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है।अपने ही विश्वासघात करते हैं। सुख-संवृद्धि तथा चल-अचल संपत्ति संबंधी अनेक परेसानी उठानी पड़ती है। नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन भी खोता रहता है। कार्य के क्षेत्रा में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्रा में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।
शंखपाल कालसर्प योग का उपाय
* राहु का मन्त्र जाप करने तथा नागपंचमी का व्रत करने व सर्पों को दूध पिलाने से इस योग के बुरे फलों में कमी आती है।* शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
* शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
* 86 शनिवार का व्रत करें और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। और हनुमान जी को मंगलवार को चोला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें।
* किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को बहते जल में प्रवाहित करें।
* सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
* शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और रसोईं में बैठकर भोजन करें। हनुमान चालीसा का नित्य 11 पाठ करें।
* सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।
* किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
पद्म कालसर्प योग । padam kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब राहु पंचम व केतु एकादश भाव में हों तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म नामक कालसर्प योग बनता है।
इस योग के फल स्वरूप जातक को जल्दी संतान सुख नहीं मिलता। पुत्र संतान की चिंता रहती है। यदि संतान हो भी जाये तो बृद्धावस्था में अलग हो जाती है अथवा दूर चली जाती है।विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रू भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं।प्रायः व्याधियों के कारण इलाज में अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।
* किसी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
* शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्र धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं।
* भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तेलाभिषेक करें।
* श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्र व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
पद्म कालसर्प योग का उपाय
* घर के शयनकक्ष में मोर पंख लगाएं तथा प्रतिदिन कम से कम एक बार मोर पंख अपने पुरे शारीर पे फिराऐं।* किसी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
* शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्र धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं।
* भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तेलाभिषेक करें।
* श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्र व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
महापद्म कालसर्प योग । mahapadam kalsarp yog
जन्मकुण्डली में जब राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में हों और इनके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है।इस योग के फल स्वरूप जातक के मन में सदा निराशा रहती है। पर जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धोखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। जातक का चरित्रा भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरा स्वप्नदेखता है। उसकी वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्रा में सफलता पाने वाला नेता होता है।
महापद्म कालसर्प योग का उपाय
* पारद शिवलिंग के सामने नित्य 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से शारीरिक बल व मानसिक शांति प्राप्त होती है।*श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
* शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्र धारण करके18 या 3 माला राहु बीज मंत्र की जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें।
* भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
* मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
नोट-
प्रिय पाठकों यह लेख ज्यादा लम्बा और उबाऊ न बने इसके लिए आगे के सभी और छः कालसर्प योग के बारे में जानकारी हेतु मेरे अगले कालसर्प योग पे लिखे हुए लेख को पढ़ें, आप की असुविधा के लिए छमा पार्थी हूँ। अगले लेख का लिंक निचे दिया हुआ है ।
कालसर्प योग के प्रकार
कालसर्प योग के प्रकार
।।इति शुभम्।।
some of you popular article
some of you popular article
- वास्तुपुरुष मंडल
- फैक्ट्री निर्माण के वास्तु सूत्र
- किस दिशा में ग्रह बलवान होते हैं
- जिओपैथिक स्ट्रेस
- कुंडली मिलान
- मंगल दोष प्रभाव व परिहार
- कुंडली में शिक्षा के योग
- वास्तुशास्त्र अनुसार दिशा का ज्ञान
- कुंडली से वास्तु दोष निवारण
- आभामंडल क्या है ?
- रुद्राक्ष पहनने के फायदे
- कुंडली अनुसार रत्न धारण
- मूलाधार चक्र एक परिचय
- सूर्य ग्रह के सम्पूर्ण मन्त्र एवं उपाय
- अंक ज्योतिष एवं अंक फल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें