ketu mantra । केतु ग्रह के मंत्र एवं उपाय
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ketu mantra evam upay |
ग्रह देव केतु की पूजा आराधना तब आवश्यक हो जाती है जब कुंडली के शुभ भावों पे इनका अशुभ प्रभाव हो जाता है। केतु अपना फल अप्रत्यासित रूप से देने के लिए प्रसिद्ध हैं। यह राहु की ही भांति एक छाया ग्रह हैं, कुछ मामलों को छोड़ दें तो केतु भी राहु के जैसे ही फल देते हैं राहु जहाँ पाप के कारक है वहीँ केतु मोक्ष के कारक कहे जाते है। अगर केतु शुभ हैं तो मन्त्र विद्या में निपुण बनाते हैं, इनका चिन्ह है ध्वज है और ध्वज सफलता, विजय, प्रभुत्व का प्रतिक है अर्थात इनकी शुभता से जीवन में ऊंचाई प्राप्त होती है केतु में जातक को उच्चता प्रदान करने की शक्ति है अतः शुभ केतु युक्त जातक नित नई सफलता प्राप्त करता है। जीरो से हीरो बनने वाली ज्यादातर स्थिति शुभ केतु की ही देंन होती है।
ऐसे में सवाल उठता है ग्रह देव केतु को किस मन्त्र अथवा उपाय से प्रसन्न किया जाये? क्या दान किया जाये? क्या पाठ किया जाये ?.. जिनसे उनके शुभ फल प्राप्त हों..तो आईये मित्रों मै उदय प्रकाश शर्मा केतु देव के सभी मन्त्र व उपायों को आप के सामने रखने का प्रयास कर रहा हूँ। आप इनका लाभ उठायें ।
नोट- निम्नलिखित किसी भी मन्त्र द्वारा ग्रह देव केतु का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है, मन्त्र की निर्धारित जप संख्या_17000 मन्त्र की सिद्धि हेतु है, आप नित्य अपने समयानुसार 1,3,5,7,9,11 माला भी कर सकते हैं। तथा निम्नलिखित उपायों मे से एक अथवा एक साथ कई उपाय एक साथ किए जा सकतें है यह अपनी श्रद्धा पे निर्भर करता है। यह सभी बारम्बार अजमाए हुए फलित उपाय है।
केतु ग्रह का पौराणिक मन्त्र
ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।
जप संख्या_ 17000
केतु ग्रह का गायत्री मन्त्र
ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतुः प्रचोदयात् ।।जप संख्या_ 17000
केतु ग्रह का वैदिक मन्त्र
ऊँ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपनयशसे।समुषद्भिरजायथाः।।
जप संख्या_ 17000
केतु ग्रह का बीज मंत्र
ऊँ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।।जप संख्या_17000
समय_ शुक्लपक्ष मंगलवार
केतु ग्रह तांत्रिक मन्त्र
ॐ कें केतवे नमःजप संख्या_ 17000
केतु ग्रह पूजा मन्त्र
ॐ कें केतवे नमःजप संख्या_ 17000
यह मन्त्र बोलते हुए देव ग्रह केतु एवं केतु यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
केतु ग्रह का दान
ग्रह देव केतु की कृपा प्राप्ति हेतु किसी युवा व्यक्ति को सतनाजा, लहसुनियाँ, कंबल, धुएं जैसे रंग के वस्त्र, कस्तूरी, लहसुनिया, लोहा, तिल, तेल, खट्टे फल, स्टील के आठ बर्तन, लवंग, हवन सामग्री, छुरी अथवा तलवार, रांगा, सुरमा, आदि का दान करने से केतु ग्रह की शांति होती है। ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह को अशुभ ग्रह माना गाया है अत: जिस जातक की कुंडली में केतु की दशा चल रही है और उसे अशुभ परिणाम प्राप्त हो रहे हैं तो शांति हेतु जो उपाय किया जा सकता हैं उनमें दान का स्थान प्रथम है। यह दान रात्रि में करते हैं 12 बजे, अब बारह बजे तो कोई दान दे नहीं सकता तो चाहिए यह की रात्रि 12 बजे इन सब चीजों को इकठ्ठा निकाल कर घर के बहार रख दें और सुबह बुधवार को किसी योग्य व्यक्ति को दान करें।विशेष- कर्ज और उधार लेकर कभी दान न दें तथा जो व्यक्ति श्रम करने के योग्य होकर भी भीख मांगते हैं एसे लोंगों को भूलकर भी दान नहीं देना चाहिए।
केतु ग्रह का व्रत
केतु की अनुकूलता प्राप्त करने हेतु विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा करनी चाहिये, व्रत करने से भी ग्रहों का प्रकोप कम हो जाता है। क्योंकि जो वार जिस ग्रह से प्रभावित होता है उसी वार का अगर व्रत किया जाए तो उस ग्रह का प्रकोप कम हो जाता है। केतु ग्रह का वार भी मंगल ग्रह की तरफ मंगलवार होता है। मंगलवार को अगर आप व्रत करते हैं तो केतु ग्रह का प्रकोप कम हो जाता है। प्रथम बार दाहिने हाँथ में जल लेकर केतु देव से अपनी समस्याओं के निवारण की प्रार्थना करते हुए कितने मंगलवार का आप व्रत करेंगे बोलते हुए संकल्प करना चाहिए और वह जल भूमि पर छोड़ देना चाहिए।(संकल्प सिर्फ पहली बार करना है उसके बाद जितने मंगलवार का संकल्प लिया था उतना मंगलवार पूर्ण होने पर करना है ठीक उसी तरह जैसे पहलीबार किया गया था अबकी बार ग्रह देव केतु का धन्यवाद बोलते हुए जल निचे गिरा देना होता है) तत्पश्चात पूजन और व्रत करना चाहिए। व्रत के दिन दूध, फल, चाय ले सकते हैं। और दिन डूबने के बाद भोजन किया जा सकता है पर भोजन सात्विक ही हो। इस दिन कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी।
जितना संकल्प लिया था उतना व्रत पूर्ण होने पर व्रत का पारण करना चाहीए, किसी योग्य बुजुर्ग ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन करना चाहिए व केतु देव की वस्तुए दान करनी चाहिए।
किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है ।
केतु ग्रह के कुंडली में शुभ स्थिति में होने पर
* गणेश जी के मंदिर में मंगलवार को लड्डू का भोग लगाकर उसका प्रसाद ग्रहण करने से केतु के शुभ फल मिलते हैं।* संकष्ट चतुर्थी का व्रत करने से भी केतु का शुभ फल प्राप्त होता है।
* अगर जन्म कुंडली में केतु बलवान हो और शुभ ग्रहों की युति में हो तो लहसुनियां (Cat’s Eye) रत्न पंचधातु में जड़वाकर सीधे हाँथ की अनामिका उंगली में धारण करने से केतु का बल बढ़ जाता है।
* काले और सफेद रंग के कपडे पहनने से केतु का प्रभाव बढ़ता है।
* बटुक भैरव की उपासना करें ।
* घर में ताम्बे के नाग देवता स्थान देकर उनकी पूजा करें।
* रात्रि में लोहे अथवा स्टील के बर्तन में पानी रख कर सोये और सुबह उस पानी को पिएँ ।
* घर में हांथी दांत की कोई वास्तु रखें ।
* स्टील अथवा लोहे की बनी नाग की आकृति वाली अंगूठी धारण करें।
* घर में भूरें रंग का कुत्ता पालें और उसे रोज अपने हाँथ से भात खिलाएं ।
* घर के आसपास जगह हो तो अपने हांथों से एक निम का पेड़ लगायें।
ग्रहदेव केतु के कुंडली में नीच एवं अशुभ होने पर
* काले और सफेद रंग के कंबल गरीबों को एवं मंदिर में दान देने चाहिए।* सफेद तिल एवं काले तिल को सफेद कपडे में बांधकर बहते हुए जल में प्रभावित करना चाहिए।
* रंग-विरंगी गाय की सेवा करनी चाहिए तथा रंग बिरंगे कुत्ते को दूध और रोटी खिलाना चाहिए।
* पीपल के पेड़ में या मंदिर में खूब ऊँची ध्वजा-पताका बांधनी चाहिए।
* केतु की दशा अन्तर्दशा में मूत्र विशर्जन में तकलीफ हो तो दोनों पैरों के अंगूठे में सफ़ेद रेशमी धागा बांधे आराम मिलेगा।
* वर्ष में एक बार कला अथवा भूरा कम्बल किसी वृद्ध ब्राह्मण को अवस्य दान करें, कूद कम्बल का प्रयोग न करें।
* घर में नित्य गूगल की धुप दें।
* श्रवण मास में रुद्राभिषेक घर में अवस्य करवाएं।
* नित्य शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम का उच्चारण करें।
* केतु को जो वस्तुएं दान की जाती हैं उनको किसी से उपहार में न लें ।
* घर में अपनी स्त्री को बोले वह आंटा गुंथकर गोल रूप न दे और न ही गुंथा आंटा फ्रिज में रखे ।
* युवा लोगों को खट्टी चीजें खिलाएं ।
इनके अलवा केतु ग्रह से संबंधित कैसी भी परेशानी हो तो स्कन्द पुराण में वर्णित इस निम्नलिखित स्त्रोत का नित्य पाठ करें अगर नित्य संभव न हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से प्रारम्भ कर के हर मंगलवार को नियम पूर्वक इसका पाठ करें, इस पाठ का बहोत ही महत्व है, इससे ग्रह देव केतु की शुभ कृपा से जीवन के सभी मनोरथ सफल होते हैं।
विधि- सर्व प्रथम स्नानआदि से निवृत होकर कम्बल के आसन पे बैठकर ग्रह्देव केतु का ध्यान करें व श्रद्धापूर्वक उनका पंचोपचार (धुप, गंध/चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाँथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मन्त्र को पढ़ें।
विधि- सर्व प्रथम स्नानआदि से निवृत होकर कम्बल के आसन पे बैठकर ग्रह्देव केतु का ध्यान करें व श्रद्धापूर्वक उनका पंचोपचार (धुप, गंध/चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाँथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मन्त्र को पढ़ें।
विनियोग मन्त्र - अस्य श्रीकेतु पंचविंशतिनामस्तोत्रस्य मधु छन्द विछ्न्दो केतुर्देवता केतुप्रित्यर्थे पाठे विनियोगः।
अब हाँथ में लिया हुआ जल धरती पर छोड़ दें और भक्ति पूर्वक पाठ करें।
केतु स्तोत्र
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक:।लोककेतु महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ।।1।।
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक्।
फलाश-धूम-संकाशश्चित्र-यज्ञोपवीतधृक् ।।2।।
तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप:।
पंचविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ।।3।।
तस्य नश्यंति बाधाश्च सर्वा: केतुप्रसादत:।
धनधान्यपशूनां च भवेद् व्रद्विर्न संशय: ।।4।।
।। इति शुभम्।।
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