ॐ श्री मार्कंडेय महादेवाय नमः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत्।
सब सुखी हों । सभी निरोग हों । सब कल्याण को देखें । किसी को लेसमात्र दुःख न हो ।

Pandit Uday Prakash
Astrologer, Vastu Consultant, Spiritual & Alternative Healers

मंगलवार, 7 मई 2024

padam kalsarp yog। पद्म कालसर्प योग

पद्म कालसर्प योग । padam kalsarp yog

जन्मकुण्डली में जब राहु पंचम व केतु एकादश भाव में हों तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म नामक कालसर्प योग बनता है।

पद्म कालसर्प योग padam kaal sarp yog in hindi

इस योग के फल स्वरूप जातक को जल्दी संतान सुख नहीं मिलता। पुत्र संतान की चिंता रहती है। यदि संतान हो भी जाये तो बृद्धावस्था में अलग हो जाती है अथवा दूर चली जाती है।विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रू भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं।प्रायः व्याधियों के कारण इलाज में अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।

पद्म कालसर्प योग का उपाय

* घर के शयनकक्ष में मोर पंख लगाएं तथा प्रतिदिन कम से कम एक बार मोर पंख अपने पुरे शारीर पे फिराऐं।
* किसी शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
* शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्र धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं।
* भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
* नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तेलाभिषेक करें।
* श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्र व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।

कालसर्प को लेकर पं. उदय प्रकाश शर्मा की अपनी बात


मुझे कुछ पाठकों ने मैसेज में लिखा की गुरु जी यह कालसर्प योग तो होता ही नहीं, इसका किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता तो उन्हें मै इतना ही कहना चाहूँगा कि काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है. कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी खोज बाद में हुई, अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता, अब जैसे ब्लॉग पहले नहीं होता था, ईमेल पहले नहीं होती थी, लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता,  मगर आज यह मौजूद हैं उसी तरह युग युगांतर से हर विषय में शोध कार्य होता रहता है और जीवन में जो अनुभव में आता है, वह प्रतिपादित भी होता है तो उसे अपने अनुभव की कसौटी पर परखने के बाद हमें स्वीकार्य करना ही  पड़ता है।

कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता ही कही जाएगी। कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है. कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है, कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं । इसे एकदम से नकार देना भी उचित न होगा। 

यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यहाँ हम यह कहना चाहेंगे कि अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर ही है, इसलिए ग्रहों को इसका दोष नहीं देना चाहिए बल्कि अपने शुभ कर्मों को बढ़ाना चाहिये व अशुभ कर्मों में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए तथा इश्वर पे भरोषा कर, हमेशा आशावान रहना चाहिये।  

।। इति शुभम् ।।


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